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________________ ३१२] जैन दर्शन के मौलिक तत्व १५-अस्तीति शाश्वतग्राही, नास्तीत्युच्छेददर्शनम् । तस्मादस्तित्व-नास्तित्वे, नाश्रीयेत विचक्षणः ॥-मा० का. १८१० १६:-आत्मेत्यपि प्रशापित-मनात्मत्यपि देशितम् । बुढेनाल्मा नचानात्मा, कश्चिदित्यपि देशितम् ॥-मा० का० १६६ . १७-सुख-दुख ज्ञान निरुपत्यविशेषादैकात्म्यम् । वै० सू० ३।२।१६ ५८-(क) व्यवस्थातो नाना। -वै० सू० ३।२।२० (ख) जीवस्तु प्रति शरीरं भिन्नः-तर्क सं० १६-न हन्यते हन्यमाने शरीरे..... कठ° उप० १-२२१५१८ २०-इन्द्रियों से मन श्रेष्ठ या उत्कृष्ट है। मन से बुद्धि, बुद्धि से महत्तत्व, महत्तत्व से अव्यक्त और अव्यक्त से पुरुष श्रेष्ठ है । वह व्यापक तथा अलिङ्ग है। -कठ• उप० २।३१७५८० पुरुष से पर ( श्रेष्ठ या उत्कृष्ट) और कोई कुछ नहीं है। वह सूक्ष्मता की पराकाष्ठा है। -कठ० उप० १।३१०, ११ २१-ईशावास्यमिदं सर्च । यत् किञ्च जगत्यां जगत् -शा० उप० २२-अविकार्योऽयमुच्यते......गी. २-२५. २३-यतो वाचो निवर्तन्ते-अप्राप्य मनसा सह -तत्त० उप० २।४ २४-स एस नेति नेति......ह० उप० ४-५-१५ २५- अस्थूल मन एव हुस्वमदीर्घमलोहितमस्नेहमच्छाय मतमोऽवाप्वनाकाश मसङ्गमरसमगन्धमचतुष्कमश्रोत्रमवागऽश्नोऽतेजस्कमप्राणममुखमनन्तर• मवाझम......वृह० उप -शना . २६-तैत्त० उप०-२०११ २७- "-२१ २८- ,-२२१ २६-, -२१ ३०-" "-४१ ३१- " "-रा १२- हि इन्दियाणि जीवा, काया पुण बप्प पारपगति । जहादि-तेसु पाणं, जीवोतिय व परूपवन्ति ।
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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