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1001 जैन दर्शन के मौलिक तस्व
२. दूसरों के विचारों के प्रति सहिष्णुता रखी जाए। ३. दूसरे सम्प्रदाय और उसके अनुयायियों के प्रति घृणा व तिरस्कार की
भावना का प्रचार न किया जाए। ४. कोई सम्प्रदाय-परिवर्तन करे तो उसके साथ सामाजिक बहिष्कार मावि अवांछनीय व्यवहार न किया जाए। ५. धर्म के मौलिक तथ्य-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह
को जीवन-व्यापी बनाने का सामूहिक प्रयत्न किया जाए। सामवस्य का आधार मध्यम मार्ग
भेद और अभेद-ये हमारी स्वतंत्र चेतना, स्वतन्त्र व्यक्तित्व और स्वतंत्र सत्ता के प्रतीक है। वे विरोध और अविरोध के साधन नहीं हैं। अविरोध का आधार यदि अभेद होगा तो भेद विरोध का आधार अवश्य बनेगा।
अमेद और भेद-ये वस्तु या व्यक्ति के नैसर्गिक गुण हैं। इनकी सहस्थिति ही व्यक्ति या वस्तु है। इसलिए इन्हें अविरोध या विरोध का साधन नहीं बनाना चाहिए। मेद भी विरोध का साधन बने—यही समन्वय से प्रतिफलित साधना का स्वरूप है। वही है अहिंसा, मध्यस्थवृत्ति, तटस्थ नीति या साम्य-योग। ___ जाति, रंग और वर्ग के मेदों को लेकर जो संघर्ष चल रहे हैं उनका आधार विषम मनोवृत्ति है । उसके बीज की उर्वर भूमि एकान्तबाद है। निरंकुरा एकाधिपत्य और अराजकता-ये दोनों ही एकान्तवाद है। वाणी, विचार, लेख और मान्यता का नियन्त्रण स्वतन्त्र व्यक्तित्व का अपहरण है ।
अराजकता में समूचा जीवन ही खतरे में पड़ जाता है। सामञ्जस्य की रेखा इनके बीच में है।
व्यक्ति अकेलेपन और समुदाय के मध्य-बिन्दु पर जोता है। इसलिए उसके सामञ्जस्य का आधार मध्यम-मार्ग ही हो सकता है। शान्ति और समन्वय
प्रत्येक व्यक्ति और समुदाय यथार्थ मूल्यों के द्वारा ही शान्ति का अर्जन व उपभोग कर सकता है। इसलिए दृष्टिकोण को वस्तु-स्पशी बनाना उनके लिए वरदान जैसा होता है।