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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
जो आत्मा के श्रमित्र हैं, वे परमात्मा की उपासना नहीं कर सकते । चैतन्य का सूक्ष्म जगत्
जो व्यक्ति सूक्ष्म जीवों का अस्तित्व नहीं मानते, वे अपना अस्तित्व भी नहीं मानते। जो अपना अस्तित्व नहीं मानते हैं, वे ही मूक्ष्म जीवों का अस्तित्व नहीं मानते। वे श्रनात्मवादी हैं । श्रात्मवादी ऐसा नहीं करते । वे जैसे अपना अस्तित्व मानते हैं, वैसे ही सूक्ष्म जीवों का अस्तित्व भी मानते हैं" ।
मिट्टी का एक ढेला, जल की एक बूंद, श्रमि का एक कण, कोंपल को हिला सके उतनी सी वायु में असंख्य जीव हैं। सुई की नोक टिके, उतनी नस्पति में असंख्य या अनन्त जीव हैं ।
ज्ञान और वेदना ( अनुभूति )
जीव के दो विशेष गुण है -- ज्ञान और वेदना ( सुख - दुःख की अनुभूति ) । मनस्क ( जिनके मन नहीं होता, उन ) जीवों का ज्ञान अस्पष्ट होता है, वेदना स्पष्ट होती हैं 33 |
मनस्क ( जिनके मन होता है, उन ) जीवों का शान और वेदना दोनों स्पष्ट होते हैं ३४ ।
भगवान् ने विशाल ज्ञान चक्षु से देखा और कहा - गौतम ! इन छोटे जीवों में भी सुख-दुख की संवेदना है ३५ ।
अहिंसा का सिद्धान्त
प्राणी मात्र को जीना प्रिय है, मौत श्रप्रिय; सुख प्रिय है, दुःख श्रप्रिय । इसलिए मतिमान् मनुष्य को किसी का प्राण न लूटना चाहिए " ।
जीव-बध न करना ही ज्ञानी के ज्ञान का सार है और यही अहिंसा का सिद्धान्त है
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हिंसा चोरी है
सूक्ष्म जीव अपने प्राण लूटने की स्वीकृति कब देते हैं ? जो व्यक्ति बलात् उनके प्राण लूटते हैं, वे उनकी चोरी करते हैं ।