________________
आत्मा क्यों ?
क्रियावादी कहते हैं जो पदार्थ प्रत्यक्ष नहीं, उसे कैसे माना जाए ? श्रात्मा, इन्द्रिय और मन के प्रत्यक्ष नहीं, फिर उसे क्यों माना जाए ! क्रियावादी कहते हैं--पदार्थों को जानने का साधन केवल इन्द्रिय और मन का प्रत्यक्ष ही नहीं, इनके अतिरिक्त अनुभव प्रत्यक्ष, योगी- प्रत्यक्ष, अनुमान और श्रागम भी है। इन्द्रिय और मन से क्या-क्या जाना जाता है ! इनकी शक्ति अत्यन्त सीमित है। इनसे अपने दो चार पीढ़ी के पूर्वज भी नहीं जाने जाते तो क्या उनका अस्तित्व भी न माना जाए ? इन्द्रियां सिर्फ स्पर्श, रस, गन्ध, रूपात्मक मूर्त द्रव्य को जानती है। मन इन्द्रियों का अनुगामी है । वह उन्हीं के द्वारा जाने हुए पदार्थों के विशेष रूपों को जानता है --चिन्तन करता है । वह अमूर्त वस्तुओं को भी जानता है, किन्तु आगम-निरपेक्ष होकर नहीं । इसलिए विश्ववर्ती सब पदार्थों को जानने के लिए इन्द्रिय और मन पर ही निर्भर हो जाना नितान्त अनुचित है । श्रात्मा शब्द, रूप, रम, गन्ध और स्पर्श नहीं है । वह रूपी सत्ता है |
इन्द्रियों से नहीं जाने जा सकते। आत्मा अमूर्त है, इसलिए, इंन्द्रिय के द्वारा न जाना जाए, इससे उसके अस्तित्व पर कोई आंच नहीं श्राती । इन्द्रिय द्वारा अरूपी आकाश को कौन कब जान सकता है ? रूपी की बात छोड़िए, अणु या आणविक सूक्ष्म पदार्थ जो रूपी हैं, वे भी इन्द्रियों से नहीं जाने जा सकते। अतः इन्द्रिय- प्रत्यक्ष को सर्वेसर्वा मानने से कोई तथ्य नहीं निकलता। समूचे का सार इतना-सा है— अनात्मवाद के अनुसार आत्मा इन्द्रिय और मन के प्रत्यक्ष नहीं, इसलिए वह नहीं । अध्यात्मवाद ने इसका समाधान देते हुए कहा -- श्रात्मा इन्द्रिय और मन के प्रत्यक्ष नहींइसलिए वह नहीं, यह मानना तर्क बाधित है। क्योंकि वह अमूर्तिक है, इसलिए इन्द्रिय और मन के प्रत्यक्ष हो ही नहीं सकती ।
आत्मबादी पूर्व प्रश्न का उत्तर देकर ही चुप न रहे। उन्होंने आत्म-सिद्धि के प्रबल प्रमाण भी उपस्थित किए। उनमें से कुछ एक निम्न प्रकार है
7t
स्व संबेदन : --
(१) अपने अनुभव से आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है । मैं हूँ, मैं सुखी