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न दर्शन के मौलिक तस्य परित्याग का भावी समी मात्मवादी परम्पराओं में रहा है और उसकी आधार भूमि है-संन्यास । गृहवास की अपूर्णता से संन्यास का, मुक्ति की अपूर्णता से मुक्ति का, कर्म की अपूर्णता से शान का, स्वर्ग की अपूर्णता से भवर्ग का और प्रवृत्ति की अपूर्णता से निवृति का महत्व बढ़ा। ये मुक्ति मादि जीवन के अवश्यम्भावी अंग है और मुकिं मादि लक्ष्य-इसी विवेक के सहारे भारतीय पादों की समानान्तर रेखाएं निर्मित हुई हैं।