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'जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
इस शरीर को खपा* | साध्य ( श्रात्म-हित ) खपने से सधता है' । इस शरीर को तपा १० । साध्य तपने से ही सधता है" ।
अभय
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लोक-विजय का मार्ग अभय है । कोई भी व्यक्ति सर्वदा शस्त्र- प्रयोग नहीं करता, किन्तु शस्त्रीकरण से दूर नहीं होता, उससे सब डरते हैं म की प्रयोग भूमि केवल जापान है। उसकी भय - व्याप्ति सभी राष्ट्रों
" ।
में है ।
जो स्वयं अभय होता है, वह दूसरों को अभय दे सकता है दूसरों को अभीत नहीं कर सकता ।
आत्मानुशासन
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संसार में जो भी दुःख है, वह शस्त्र से जन्मा हुआ है १३ । संसार में जो भी दुःख है, वह संग और भोग से जन्मा हुआ है १४ । नश्वर सुख के लिए प्रयुक्त क्रूर शस्त्र को जो जानता है, वही शस्त्र का मूल्य जानता है, वही नश्वर सुख के लिए प्रयुक्त क्रूर शस्त्र को जान सकता है" ।
1 स्वयं भीत
भगवान् ने कहा- गौतम ! तू श्रात्मानुशासन में श्रा । अपने आपको जीत । यही दुःख-मुक्ति का मार्ग है" । कामों, इच्छाओं और वासनाओं को जीत । यही दुःख-मुक्ति का मार्ग है '
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लोक का सिद्धान्त देख - कोई जीव दुःख नहीं चाहता । तू भेंद में श्रभेद देख, सब जीवों में समता देख । शस्त्र प्रयोग मत कर। दुःख-मुक्ति का मार्ग यही है ।
कषाय - विजय, काम विजय या इन्द्रिय-विजय, मनोविजय, शस्त्र- 1 - विजय और साम्य दर्शन - दुःख मुक्ति के उपाय हैं । जो साम्यदर्शी होता है, वह शस्त्र का प्रयोग नहीं करता । शस्त्र विजेता का मन स्थिर हो जाता है । स्थिरचित्त व्यक्ति को इन्द्रियां नहीं सतातीं । इन्द्रिय-विजेता के कषाय ( क्रोध, मान, माया, लोभ ) स्वयं स्फूर्त नहीं होते । संवर और निर्जरा
यह जीव मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ( मन,
वाणी