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________________ २२२ ] जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व पैदा होता है और वृक्ष मी । अनुक्रम सम्बन्ध बीज से पैदा होता है-ये प्रथम भी हैं और पश्चात् से रहित शाश्वतभाव है। इनका प्राथम्य और पाश्चात्य भाव नहीं निकाला जा सकता। यह ध्रुव श्रंश की चर्चा है। 'परिणमन की दृष्टि से जगत् परिवर्तनशील है । परिवर्तन स्वाभाविक भी होता है और वैभाविक भी। स्वाभाविक परिवर्तन सब पदार्थों में प्रतिक्षण होता है । वैभाविक परिवर्तन कर्म बद्ध-जीव और पुद्गल-स्कन्धों में ही होता है । हमारा दृश्य जगत् वही है । विश्व को सादि- सान्त मानने वाले भूतवादी या जड़ा तवादी दर्शन सृष्टि और प्रलय को स्वीकार करते हैं, इसलिए उन्हें विश्व के आदि कारण की अपेक्षा होती है। इनके अनुसार चैतन्य की उत्पत्ति जड़ से हुई है। जड़चैतन्यद्वैतवादी कहते हैं- "जगत् की उत्पत्ति जड़ और चैतन्य -- इन दोनों गुणों के मिश्रित पदार्थ से हुई है। विश्व को अनादि अनन्त मानने वाले अधिकांश दर्शन भी सृष्टि और प्रलय को या परिवर्तन को स्वीकार करते हैं। इसलिए उन्हें भी विश्व के आदि कारण की मीमांसा करनी पड़ी। श्रद्वैतवाद के अनुसार विश्व का आदि कारण ब्रह्म है। इस प्रकार अद्वैतवाद की तीन शाखाएं बन जाती है( १ ) जड़ाद्वैतवाद ( २ ) जड़चैतन्याद्वैतवाद ( ३ ) चैतन्याद्वैतवाद | जहाद्वैतवाद और चैतन्याद्वैतवाद - ये दोनों "कारण के अनुरूप कार्य होता है". - इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते। पहले में जड़ से चैतन्य, दूसरे में चैतन्य से जड़ की उत्पत्ति मान्य है । द्वैतवादी दर्शन जड़ और चैतन्य दोनों का अस्तित्व स्वतन्त्र मानते हैं । इनके अनुसार जड़ से चैतन्य या चैतन्य से जड़ उत्पन्न नहीं होता । कारण के अनुरूप ही कार्य उत्पन्न होने के तथ्य को ये स्त्रीकार करते हैं। इस अभिमत के अनुसार जड़ और चैतन्य के संयोग का नाम सृष्टि है । 9 नैयायिक, वैशेषिक और मीमांसक दर्शन सृष्टि पक्ष में श्रारम्भवादी है १२९५ air और योग परिणामवादी हैं १३०) जैन और बौद्ध दर्शन सृष्टिवादी नहीं, परिवर्तनवादी है १३१ | जैन-दृष्टि के अनुसार विश्व एक शिल्प गृह है। उसकी व्यवस्था स्वयं में समाविष्ट नियमों के द्वारा होती है । नियम वह पद्धति
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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