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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
२- बादर ।
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अनन्त प्रदेशी स्कन्ध भी जब तक सूक्ष्म परिणति में रहता है, तब तक इन्द्रियग्राह्म नहीं बनता और सूक्ष्म परिणति वाले स्कन्ध चतुःस्पर्शी होते हैं । उत्तरवर्ती चार स्पर्श बादर परिणाम वाले चार स्कन्धों में ही होते हैं, । गुरु-लघु और मृदु-कठिन – ये स्पर्श पूर्ववर्ती चार स्पर्शो के सापेक्ष संयोग से बनते हैं । रूक्ष स्पर्श की बहुलता से लघु स्पर्श होता है और स्निग्ध की बहुलता से गुरु | शीत व स्निग्ध स्पर्श की बहुलता से मृद स्पर्श और उष्ण तथा रुक्ष की बहुलता से कर्कश स्पर्श बनता है। तात्पर्य यह है कि सूक्ष्म परिणति की विवृति के साथ-साथ जहाँ स्थूल परिणति होती है, वहाँ चार स्पर्श भी बढ़ जाते हैं। पुद्गल के विचार
पुद्गल द्रव्य चार प्रकार का माना गया है :--
-स्कन्ध
२-स्कन्ध- देश
३ -स्कन्ध- प्रदेश
४- परमाणु
स्कन्ध - परमाणु- प्रचय। देश-स्कन्ध का कल्पित विभाग | प्रदेश - स्कन्ध से पृथग्भूत अविभाज्य अंश । परमाणु - स्कन्ध से पृथग् निरंश-तत्त्व | प्रदेश और परमाणु में सिर्फ स्कन्ध पृथग्भाव का
पृथग्भाव और
अन्तर है
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पुद्गल कबसे और कब तक ?
प्रवाह की अपेक्षा स्कन्ध और परमाणु अनादि अपर्यवसित है। कारण कि इनकी सन्तति अनादिकाल से चली आ रही है और चलती रहेगी। स्थिति की अपेक्षा यह सादि सपर्यवसान भी है। जैसे परमाणुत्रों से स्कन्ध बनता है और स्कन्ध-मेद से परमाणु बन जाते हैं ।
परमाणु परमाणु के रूप में, स्कन्ध स्कन्ध के रूप में रहें तो कम-से-कम एक समय और अधिक से अधिक असंख्यात काल तक रह सकते हैं ८४ । बाद में तो उन्हें बदलना ही पड़ता है। यह इनकी कालसापेक्ष स्थिति है । क्षेत्रसापेक्ष स्थिति--परमाणु अथवा स्कन्ध के एक क्षेत्र में रहने की स्थिति भी यही है।