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________________ जैन दर्शनाक मौलिक तत्व . [११ . प्राकारा, काल, पुद्गल और जीव । काल के सिवाय शेष पाँच द्रव्य अस्तिमाय है। अस्तिकाप का अर्थ है-प्रवेश-समूह-अक्यव-समुदाय। प्रत्येक द्रव्य का सबसे छोटा, परमाणु जितना माग प्रदेश कहलाता है। उनका कापसमूह अस्तिकाय है। धर्म, अधर्म, श्राकाश और जीव के प्रदेशों का विघटन नहीं होता। इसलिए वे अक्मिागी द्रव्य है। ये अवयवी इस दृष्टि से है कि इनके परमाणु तुल्य खण्डों की कल्पना की जाए तो वे असंख्य होते हैं। पुद्गल विभागी द्रव्य है। उसका शुद्ध रूप परमाणु है। वह अषिभागी है। परमाणुओं में संयोजन-वियोजन स्वभाव होता है। अतः उनके स्कन्ध बनते हैं और उनका विघटन होता है। कोई भी स्कन्ध शाश्वत नहीं होता। इसी दृष्टि से पुद्गल द्रव्य विमागी हैं। वह धर्म द्रव्यों की तरह एक व्यक्ति नहीं, किन्तु अनन्त व्यक्तिक है। जिस स्कन्ध में जितने परमाणु मिले हुए होते हैं, वह स्कन्ध उसने प्रदेशों का होता है। दयणुक स्कन्ध द्विप्रदेशी यावत् अमन्ताणुक स्कन्ध अनन्त प्रदेशी होता है। जीव भी अनन्त व्यक्ति है। किन्तु प्रत्येक जीव असंख्य प्रदेशी है। काल न प्रदेश है और न परमातु । वह औपचारिक द्रव्य है। प्रदेश नहीं, इसलिए उसके अस्तिकाय होने का प्रश्न ही नहीं उठता। काल वास्तविक वस्तु नहीं तब द्रव्य क्यों ? इसका समाधान यह है कि वह द्रव्य की मांति उपयोगी है-व्यवहार प्रवर्तक है, इसलिए उसे द्रव्य की कोटि में रखा गया है। वह दो प्रकार का है-नैश्चयिक और व्यावहारिक। पांच अस्तिकाय का जो वर्तमान-रूप परिणमन है, वह नैश्चयिक है, ज्योतिष की गति के आधार पर होने वाला व्यावहारिक। अथवा वर्तमान का एक समय नश्चयिक और भूत, भविष्य व्यावहारिक। बीता हुश्रा समय चला जाता है और पाने वाला समय उत्पन्न नहीं होता, इसलिए ये दोनों अविद्यमान होने के कारण व्यावहारिक या औपचारिक हैं। क्षण, मुहूर्त, दिन रात; पक्ष, मास, वर्ष श्रादि सब मेद व्यावहारिक काल के होते हैं। विंग स्वतन्त्र पदार्थ नहीं है। आकाश के काल्पनिक खण्ड का नाम दिग् है २५॥ द्रव्य भूत और मकिय. काः संकलन करने वाला जोकने काला) पर्समान है। वर्तमान के बिना भूत और भविष्यका कोई मल्प नहीं रहवा । इसका अर्थ
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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