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________________ १४ कोटा कोरि नागर १२8j ६ नाराच संहनन नाम सादिसंस्थान नाम ८ अर्द्धनाराच संहनन नाम वामन संस्थान नाम ६. कोलक संहनन नाम कुम्ज संस्थान नाम ६२ सेवा संहनन नाम हुंडक संस्थान नाम ६४ स्वेतवर्ण नाम, मधुर-रस-नाम एक सागर के उप भाग में पल्य का असंख्यातवां भाग कम एक सागर के पुन भाग में पल्य का असंख्याता माग कम तीन विकलेन्द्रियवत् १६ कोटा कोटि सागर ३ विकलेन्द्रियवत् नपुंसक-वेदवत् नपुंसक-वेदवत् जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व ६६ पीत-वर्ण-नाम, आम्ल-रस-नाम ६८ रक्तवर्ण नाम, कषाय-रस-नाम हास्यवत् एक सागर के ३१ वें भाग में पल्य का १२॥ कोटा कोटि सागर असंख्यातवां भाग कम । ( एक सागर के भाग में पल्य का १५ कोटा कोटि सागर र असंख्याता माग कम। | एक सागर के रवें भाग में पल्य का १णा कोटा कोटि सागर | असंख्याता भाग कम।। . १.. नील वर्ण, कटुक रस
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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