________________
जैन दर्शन के मौलिक तत्व स) तिर्वच मति नाम-- पशु, पक्षी आदि के जीवन (दुःख-बहुल दशा) को
उपलब्धि के निमित्त कर्म-पुद्गल । (ग) मनुष्य-गति नाम--मनुष्य-जीवन (सुख-दुःख 'मिश्रित वशा) की
उपलब्धि के निमित्त कर्म-पुदगल । (1) वेष-गति नामदेव जीवन (सुखमय दशा) की उपलब्धि के निमित्त
कर्म-पुद्गल। (२)जाति-नाम-इन्द्रिय-रचना के निमित्त कर्म-पुद्गल । (क) एकेन्द्रिय-जाति-नाम--स्पर्शन, (त्वम्) इन्द्रिय की प्राप्ति के निमित्त
कर्म-पुद्गल। (ख) दीन्द्रिय-जाति-नाम-स्पर्शन और जिहा-इन दो इन्द्रियों की प्राप्ति
के निमित्त कर्म-पुद्गल। (ग) श्रीन्द्रिय-जाति-नाम-स्पर्शन जिवा और नाक-इन तीन इन्द्रियों
की प्राति के निमित्त कर्म-पुद्गल । (घ) चतुरिन्द्रिय-जाति-नाम-स्पर्शन, जिला, नाक, और चक्षु-इन चार
इन्द्रियों की प्राप्ति के निमित्त कर्म-पुद्गल। (क) पंचेन्द्रिय जाति नाम-पर्शन, जिवा, नाक चक्षु और कान
इन पांच इन्द्रियों की प्राप्ति के निमित्त कर्म-पुदगल। (३) शरीर नाम-शरीर-प्राप्ति के लिए निमित्त कर्म-पुद्गल । (क) औदारिक-शरीर-नाम-स्थूल शरीर की प्राप्ति के निमित्त कर्म-पुद्गल । (ख) वैक्रिय-शरीर नाम-विविध क्रिया कर सकने वाले कामरूपी शरीर की
प्राप्ति के निमित्त कर्म-पुद्गल । (ग) श्राहारक-शरीर-नाम-आहारक-लब्धिजन्य शरीर की प्राप्ति के
निमित्त कर्म-पुद्गल। (घ) तेजस्-शरीर-नाम-तेज, पाक तथा तेजस् व शीत लेश्या का निर्गमन
कर सकने पाले शरीर की प्राति के निमित्त कर्म-पुद्गल । (क) कामण-शरीर-नाम-कर्म समूह या कर्म विकारमय शरीर की प्राति के
निमिच कर्म-पुदगल।