SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्युत्सर्ग— जैन साधना का केन्द्र बिन्दु ( इन्द्रचन्द्र शास्त्री एम० ए०, पी-एच० डी० ) भारत में अनेक साधना-पद्धतियों का विकास हुआ। प्रत्येक ने हमारी समस्याओं के मूल में किसी कारण का पता लगाया और उसे दूर करने के लिये लक्ष्य - विशेष निश्चित किया । वही लक्ष्य साधना-पद्धति का केन्द्र-बिन्दु कहा जायगा । बौद्ध धर्म ने विश्व की समस्याओं का मूल 'तृष्णा' को बताया और उस पर विजय प्राप्त करने के लिये शून्यता के अभ्यास पर बल दिया । उसका कथन है कि जब समस्त वस्तुएँ शून्य अर्थात् निःसार हैं तो उनके प्रति तृष्णा कैसी ? भक्तिवादी परम्पराओं ने समस्याओं का मूल अहंकार को समझा और उसे मिटाने के लिये अपने आपको भगवान् के चरणों में अर्पित करने का सन्देश दिया । यह अपेण ही भक्ति-साधना का केन्द्र बिन्दु है । वेदान्त ने समस्याओं का मूल भेद-बुद्धि को माना और उसे दूर करने के लिये अभेद या एकत्व साधना को प्रस्तुत किया। जैन-धर्म समस्याओं का मूल ममता या मोह को मानता है और उस पर विजय प्राप्त करने के लिये व्युत्सर्ग अर्थात् त्याग के अभ्यास पर बल देता है । जैन-धर्म में दैनन्दिन अभ्यास के रूप में अनेक प्रकार के त्यागों का विधान है। किसी में सूर्योदय के पश्चात् दो घड़ी के लिये कोई वस्तु मुँह में न डालने का निश्चय किया जाता है। किसी में एक पहर और किसी में दो पहर के लिये । इसी प्रकार विशेष दिनों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के त्याग किये जाते हैं । अन्न-जल के अतिरिक्त बोलने, घूमने-फिरने, संग्रह करने आदि की मर्यादाएँ भी की जाती हैं। भोजन में द्रव्यों का परिमाण किया जाता है अर्थात् यह निश्चय किया जाता है कि आज इतनी वस्तुओं से अधिक नहीं खाऊँगा । ये सब अभ्यास जीवन में अनुशासन लाते हैं। इनके लिये किये जाने वाले निश्चयों के लिये प्राचीन समय से शास्त्रीय पाठ चले आ रहे हैं। उनके अंत में बोसिरामि या बोसिरेहि कहा जाता है। इसका अर्थ है मैं स्वयं छोड़ता हूं। जब यह प्रतिज्ञा गुरु या किसी आदरणीय व्यक्ति द्वारा दिलाई जाती है तो वह वोसिरेहि कहता है। यह मध्यम पुरुष का प्रयोग है, जिसका अर्थ है
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy