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[ ५८ ] थे, वहाँ यह भी संभव है कि उस समय के मनुष्यों का जीवन स्वयं ही इतना सीधा-सादा और और अल्प आवश्यकताओं वाला था कि उसका यापन उन उन वृक्षों के फलों से सहज रूप में ही हो जाता था। अथवा यह भी संभव है उन्हें उन वृक्षों के द्वारा जो मिलता था, वे उससे अपनी आवश्यकता के अनुसार वैसे उपकरण तैयार कर लेते थे।
आज भी अजमेर के पास एक ऐसा वृक्ष है जो इच्छित वस्तुएं फल रूप में देता है, उसको कल्पवृक्ष कहा गया है। दक्षिण में भी ऐसे वृक्ष हैं जो गौ की तरह दूध देते है। उन वृक्षों के नीचे टीन के डिब्बे रख दिये जाते हैं। उस दूध के पाउडर से मोटर के टायर, टेलीफोन तथा रेडियों आदि के बाक्स बनते है।
कई वृक्ष ऐसे होते हैं जिनसे मनुष्य प्रभावित हो जाते हैं। प्राचीन काल में ऋषि, मुनि प्रायः जंगलों में रहते थे; क्योंकि जंगलों में विशेष प्रकार के वृक्ष होते थे, उनमें कई वृक्ष ऐसे भी थे जिनके फल आदि का सेवन करने से वासना पर सहज रूपसे विजय हो जाती। वासना-विजय सन्यास का प्रथम लक्षण है। संभव है वे मुनि उन-उन प्रयोगों द्वारा अपनी साधना में विकास करते थे। ___ अमेरिका में भी ऐसे वृक्ष हैं जिन्हें 'मिल्क टी' और 'बेड टी' और लाइट ट्री आदि नामों से पुकारा जाता है। इन वृक्षों के फल, दूध, रोटी और प्रकाश के काम में आते हैं। अतः इस तथ्य को निस्सन्देह स्वीकार करना होगा कि प्राचीन काल में भी ऐसे वृक्ष थे जो मनुष्यकी हर आवश्यकताओं के पूरक थे।
इस्लाम धर्म में ऐसे वृक्षों को दरख्त या तोबे कहाजाता है और क्रिश्चियन धर्म में स्वर्गीय वृक्ष की अभिधा दी गई है।।
वृक्षों के फल खाने-पीने के काम में और उनके पत्र छाल आदि पहनने के काम में आते हैं, कई वृक्ष कांटेदार होते हैं। उनका भी बहुत बड़ा उपयोग है । साप्ताहिक हिन्दुस्तान में इस प्रकार का उलेख करते हुए लिखा है कि एक किस्म के वृक्ष ऐसे हैं जिनकी शाखाएं छूरी या बी जैसी हैं। मनमोहक होने के कारण लोग इनके पास जाते हैं, तब शाखाएं नीचे कककर उनसे लिपट जाती हैं और खून चूसकर शरीर में सर्प जेसा विष फेला देती है। फलतः व्यक्ति मर जाता है। अफ्रीका में लोग अपराधी को दण्ड देने के लिए इन वृक्ष के नीचे छोड़ देते हैं।
१-भरतमुक्ति एक अध्ययन पृ. ४ २---वही
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