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[ ५६ ] 'पेरदेश में एक प्रकार के वक्ष हैं, जिनसे पानी भरता रहता है। ये वाय मण्डल की नमी को खींचकर जमा रखते हैं। गर्मी में इन वृक्षों से स्वतः पानी मरने लगता है। इसने यह जाना जाता है कि वृक्षों में एक विचित्र प्रकार की शक्ति होती है जो सहज रूप से विभिन्न प्रकारों में परिणत होकर उपयोग में आती है।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि 'कल्पवृक्ष' कोई काल्पनिक तत्व नहीं है। इसका इतिहास जनश्रुति मात्र नहीं, लेकिन वास्तविक है। आज भी किसी न किसी रूप में इसका अस्तित्व सिद्ध करने वाले प्रमाण मिलते हैं। लेकिन ऐसे तत्त्व काल की गहरी परतों में ओमिल हो गये हैं। आज फिर से अन्वेषकों का ध्यान इस ओर गया है, संभव है भविष्य उन परतों को उखेड़ कर सही तत्त्व को प्रकाश में ला सके, फिर भी इसमें तो संदेह को अवकाश नहीं कि यौगलिक मनुष्य वृक्षों के आधार पर ही जीवन यापन करते थे।