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________________ [ १५ ] प्रकाश से अमिराम 'दीपशिखा' नामक पक्ष समूह था, जो उद्योत विधि वाले फलों से परिपूर्ण था। सुषम सुषमा आरे में अग्नि का अभाव था, लेकिन अमि की अपेक्षा किसी न किसी रूप में पूर्ण होती थी। अन्य सब कार्यों की तरह अमि का कार्य भी तत्कालीन वृक्ष ही करते थे। वे वृक्ष शरदकालीन सूर्य के समान निर्मल प्रकाश वाले विद्यत् के समान स्निग्ध और निधूर्म अग्नि की तरह चमकते थे। अग्नि से धौत, सुवर्ण, केसुक, अशोक और जपा वृक्षों के विकसित पुष्प समूह तथा मणि रत्नों की किरणों की तरह देदीव्यमान जात्य हिंगुल के रंग से भी अधिक सुन्दर ज्योतिष्क नामक वृक्ष समूह था। संभवतः शीत काल में या अन्य किसी कारण विशेष में इन वृक्षों का उपयोग होता था। अग्नि की तरह प्रकाशमान होने से जिस मार्ग में ये वृक्ष होते थे, वहाँ अन्धकार भी नहीं होता था। ___कला का उद्भव मानव जाति के आदि इतिहास से जुड़ा हुआ है। किसी भी तथ्य की कलात्मक अभिव्यक्ति का नाम कला है। बोलना, लिखना, चित्र करना, उठना, बैठना आदि सारे कार्य कलात्मक ढग से किये जाने पर ही व्यवस्थित रूप से हो सकते हैं। योगलिक मनुष्य सभ्यता, कला शब्दों से अपरिचित थे। फिर भी कला का इतिहास हमें उस समय तक ले जाता है। आज प्रयोगों के द्वारा कला का विकास हो रहा है, उस समय वह स्वतः निष्पन्न थी। उस समय के चित्रमय वृक्ष ही कला के प्रतीक थे। उन वृक्षों का नाम 'चित्रांग' था। जैसे दर्शनीय मकान बहुत चित्रों से चित्रित होता है, रम्य, कुसुममाला और विविध वर्गों से शोभित होता है वैसे ही 'चित्रांगक' वृक्ष अनेक प्रकार की चित्र विधि से युक्त थे! भोजन हर प्राणी के लिए आवश्यक है। मनुष्य अपनी इच्छा के अनुकल भोजन तैयार कर लेते हैं। अन्य प्राणियों को जिस रूप में जो कुछ मिलता है वे उसी से सन्तुष्ट रहते हैं। लेकिन अकर्म भूमि में उत्पन्न यौगलिक मनुष्य भोजन नहीं बनाते थे। आज पाककला विकसित हो चुकी है। नएनए प्रकारों का आविष्कार हो रहा है, लेकिन उस समय इसका उद्भव भी नहीं हुआ था। फिर भी मनुष्य भूखे नहीं रहते थे। पशुओं की तरह मनुष्य भी वृक्षों के फलों द्वारा उदर पूर्ति करते थे। १-जहा से......अइरुग्गय सरय सूर मंडल...जीवा-पा० ३४८ २-जहा से पेच्छा घरे विचिते...जीवा. पा० ३४८
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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