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जीवन को आवश्यकताएं पूरी करने वाले वृक्ष
साध्वीश्री कनकप्रभा वृक्षों के साथ मनुष्य का बहुत निकट सम्बन्ध रहा है। एक समय मनुष्य की हर अपेक्षाएं वृक्षों के द्वारा ही पूरी होती थीं। यही कारण है वे उनका आलीय की तरह पोषण करते थे। अभिज्ञान' शाकुन्तल में वृक्षों के साथ शकुन्तला का सहोदर स्नेह व्यक्त किया गया है। यह अतिरेक नहीं, क्योंकि वृक्ष मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी है। धूप से तपे हुए क्लान्त पथिक वृक्ष की छाया में ही शान्ति का अनुभव करते हैं। उनके फल खाकर भूख शान्त करते हैं और इससे प्यास बुझाते हैं। रोगी व्यक्ति तो फलों के आधार पर ही जीता है। वृक्ष शुद्ध हवा देते हैं, वर्षा के आकर्षण केन्द्र है और यह भी माना जाता है कि जहाँ वृक्ष होते हैं वहाँ न तो अतिवृष्टि होती है और न अनावृष्टि ; किन्तु आवश्यकता के अनुसार वर्षा होती है। __ आज मनुष्य कृत्रिम पदार्थों के प्रति आस्थावान् हो गया है। अतः वह स्वभाव को छोड़ कर पर-भाव में रमण करने लग गया है। उसकी आवश्यकताओं का इतना विस्तार हो गया है कि संसार के समस्त पदार्थ भी उन्हें पूरा नहीं कर सकते। किसी विचारक ने कहा है-"विश्व के सभी व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए पदार्थ पर्याप्त से भी अधिक है, पर एक भी व्यक्ति की आकांक्षा पूरी करने के लिए पदार्थ अपर्याप्त है। इसीलिए तो आज सीमातीत भौतिक उपलब्धि के बावजूद भी मनुष्य असन्तुष्ट रहता है।
योगलिक युग में मनुष्य अल्प आकांक्षाओं वाले होते थे। उनकी भूख प्यास का शमन, वस्त्र, पात्र, मकान, अग्नि आदि की पूर्ति तथा मनोरन्जन की उपलब्धि वृक्षों द्वारा ही होती थी। उन वृक्षों को जैन आगमों में 'कल्पवृक्ष' कहा गया है। आज कई लोगों को इनके अस्तित्व में सन्देह है, अतः वे जिज्ञासा करते हैं कि कल्प वृक्षों का कोई इतिहास और अर्थ भी है या यों ही परम्परा चली आ रही है ? इसके लिए कुछ अन्वेषण की अपेक्षा है।
कल्प शब्द अनेकार्थक है। सामर्थ्य, वर्णना, छेदन करना, औपम्य और अधिवास आदि अर्थों में यह प्रयुक्त होता है। लेकिन यहाँ समर्थ अर्थ में इसका
१-अभिज्ञान शाकुन्तल ०१ पृ. १३