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हुई दिखाई पड़ती हैं और प्रकृति अनुराग से अनुरंजित तथा सहानुभूति प्रकट करती हुई बान पड़ती है। अधिकांश चरितकाव्यों में आदर्श की प्रधानता है और कथाकाव्यों में पथार्य की। यद्यपि दोनों में ही नायक या नायिका के असाधारण कार्यों का वर्णन मिलता है परन्तु एक में वह देवी संयोग बोर धार्मिक विश्वासों से सम्बद्ध होता है और दूसरे में पतिलौकिक एवं असम्भव घटनाओं से अनुरंजित । यही कारण है कि चरितकाव्यों में आदर्श चरित्रों की प्रधानता रहती है और उनके जीवन की सिद्धि तथा पूर्णता का वर्णन किया जाता है। निश्चय ही चरितकाव्य का नायक लौकिक जीवन की सीमाओं से ऊपर असाधारण गुण, शक्ति, शान, आदि से समन्वित पूर्ण पुरुष के रूप में चित्रित किया जाता है। यथार्थ में चरितकाव्य पुराणों से विकसित हुए हैं इसलिए आख्यान तथा इतिवृत्त के साथ ही पौराणिक पुरुष के रूप में उनका असम्भव तथा अकल्पित रूप भी वर्णित रहता है। कथाकाव्य में भले ही आदर्श पुरुष का जीवन विन्यस्त हुआ हो परन्तु पूर्ण पुरुष के रूप में उसका चित्रण नहीं होता। और फिर, चरितकाव्य की कथावस्तु अधिकतर पुराणों से अधिगृहीत होती है परन्तु कथाकाव्य की वस्तु लोक-जीवन तथा लोक-कथाओं से ममन्वित होती हैं।
भारतीय साहित्य में कथाकाव्य की परम्परा अत्यन्त प्राचीन काल से चली आ रही है। काव्य के मूल में जीवन की लिपिबद्ध कथाएं ही हैं जो अति रूप में वर्षों तक प्रचलित रही हैं और देश-देशान्तरों में अपने मूल रूप में स्थानान्तरित होती रही है। अपभ्रंश में महाकाव्यों की कड़ी में साहित्य की अन्यतम विद्या कथाकाव्य भी लक्षित होती है जिसमें मानवीय संवेदना कतिपय घटनाओं के विग्रह में सजीव एवं चारित्रिक सन्धान में अनुस्यूत रहती है। कथा ही उसमें मुख्य होती है जो किसी उद्देश्य को ले कर कही जाती है। ये कथाएं प्रायः वक्ता-श्रोता-शैली में कही गई है। कहीं-कहीं सुनने वाला जिज्ञासा और उत्सुकता प्रकट करता चलता है और लेखक उसका समाधान करता हुआ आगे की घटनाओं का उल्लेख करता है। चरित्रकाव्यों में नायक के जीवन का समूचा इतिवृत्त अभिव्यक्त करना ही कवि का उद्देश्य जान पड़ता है जिनमें अभिप्राय विशेष न हो कर समूचे जीवन का प्रभाव और नायक के बादश तथा असाधारण गुणों का प्रकाश रहता है। जिन कथाकाव्यों में वस्तु उहेश्य-विशेष से नियोजित नहीं है वे लोक कथाएं है जो साहित्यिक रूदियों के साथ कालान्तर में काव्य के सांचे में प्रबन्ध के रूप में दाल दी गई है। कुछ कथाएँ लोक-कथा या जनश्रुति के रूप में प्रचलित होने