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पद्मकीर्ति विरचित "पार्षपुराण" अठारह-सन्धियों में निबद्ध होने पर भी केवल एक महापुरुष तीर्थकर पार्श्वनाथ का चरित वर्णित होने के कारण चरितकाव्य ही कहा जायगा। इसी प्रकार जयमित्रहल्ल के "बदमाणकब" और "मल्लिणाहकब" काव्यसंशक होने पर भी चरितकाव्य है। और "उपमसिरिचरिउ" के पीछे चरित शब्द जुड़ा होने पर भी वह चरितकाव्य न हो कर कथाकाव्य है। वस्तुतः पुराणकाव्य की भाँति कथाकाव्य और चरितकाव्य में कई बातो में अन्तर है।'
अर्थ प्रकृतियाँ, कार्यावस्थाएं, नाटकीय सन्धियाँ, कार्यान्विति तथा कथा-तत्वों की संयोजना में इन दोनों में अन्तर देखा जाता है। यथार्य में चरित तो लोक में देखा जाता है, काव्य में तो वस्तु ही प्रधान होती है परन्तु चरितकाव्य में मूल चेतना कथा न हो कर कार्य-व्यापार होती है, जिसमें नायक का प्रभावशाली चरित्र चित्रित किया जाता है।
डा. शम्भूनाथ सिंह ने अपभ्रंश काव्यों की दो शैलियों मानी हैपौराणिक और रोमांचक। इन दोनो शेलियों में लिखे गये काव्यों को चरितकाव्य कहा गया है। संस्कृत के चरितकाव्य चारों शैलियो (शास्त्रीय, पौराषिक, रोमांचक, ऐतिहासिक) में तथा प्राकृत के तीन शलियो में है। परन्तु तथ्य यह है कि अपभ्रंश के चरितकाव्य अधिकतर पौराणिक शैली में लिखे गये हैं और कथाकाव्य रोमांचक शैली में। "विलासवई कहा" रोमांचक शैली में लिखा हुआ उत्कृष्ट कथाकाव्य है। यद्यपि शेली ही मेदकरेखा नहीं मानी जा सकती है पर कही-कही शेलीगत यह अन्तर अवश्य मिलता है। अपभ्रंश के अधिकतर काव्य पौराणिक शैली में लिखे गये हैं। इसलिए कथाकाव्यों से चरितकाव्यो की संख्या अधिक है। सामान्यतया कथाकाग्य उपन्यास की भाँति रोचक तथा कुतूहलवर्द्धक शेली में लिखे गये हैं। इनमें वर्णित कथावस्तु लोककथा एवं कल्पित हैं जो विस्मय, औत्सुक्य, कुतूहल तथा भावनातिरेक से अनुरंजित लक्षित होती हैं। कथाकाव्य के नायक लोक जीवन के जाने-पहिचाने साधारण पुरुष हैं जो सुख-दुःख से अनुप्राणित तथा आशा-निराशा, हर्ष-विषाद के हिंडोलो में झूलते हुए दिखाई पड़ते है। जहाँ उनके जीवन में अन्धकार है वहीं प्रकाश की उज्ज्वल किरणे मुस्कराती
३-विशेष द्रष्टव्य है-“भविसयत्तकहा और अपभ्रश-कथाकाव्य"
शीर्षक लेखक का शोध-प्रबन्ध । १-हिन्दी महाकाव्य का स्वरूप विकास-डा. शम्भूनाथ सिह, पृ० १७४