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________________ [ १५७ 1 श्रावण्य फल पृच्छा : 1 ऐसा मैंने सुना :-- भगवान (बुद्ध) राजगृह" के जीवक कौमार भृत्य के आम्रवन में साढ़े चार सौ क्षुिओं के महामि संघ के साथ बिहार करते थे उस समय पूर्णमासी के उपोसथ के समय, चातुर्मास की कौमुदी से पूर्ण पूर्णिमा की रात को राजा मागध, अजातशत्रु वेदेहीपुत्र, राजामात्यों से घिरा हुआ, उत्तम प्रासाद के ऊपर बैठा हुआ था । तब उस दिन राजा अजातशत्रु ने पूर्णिमा के उपोसथ का उदान कहा- "अहो ! कैसी सुन्दर चांदनी रात है ? कैसी रमणीय दर्शनीय प्रासादिक लक्षणीय चान्दनी रात है !! किस भ्रमण या ब्राह्मण का सत्संग करें ? जिसका सत्संग हमारे चित्त को प्रसन्न करे ।” ऐसा कहने पर एक राजमन्त्री ने राजा अजातशत्रु से कहा - "महाराज ! यह जो पूर्ण काश्यप, संघ-स्वामी, गण-अध्यक्ष, अनुभवी, चिरकाल से प्रब्रजित, बहुत लोगों से सम्मानित ज्ञानी यशस्त्री तीर्थंकर वयोवृद्ध है। महाराज ! उसी पूर्ण काश्यप से धर्मचर्चा करें। उसके साथ थोड़ी सी धर्म चर्चा करने पर आपका चित प्रसन्न हो जाएगा । " उसके ऐसा कहने पर मगध राज मौन रहा। दूसरे मन्त्री ने कहा - "यह खली गोशाल संघस्वामी, इत्यादि है ।" पर मगधराज चुप रहा । इसी प्रकार अन्य मन्त्रियों ने, अजित केश कम्बली, प्रकुधकात्यायन, संजय बेलीपुत्त आदि के सत्संग के लिए कहा पर राजा मौन रहा । अन्य मन्त्री ने कहा- "महाराज ! यह निग्गण्ठ नाथपुत्त संघस्वामी है। उनसे धर्म - चर्चा करें ।" पर राजा मौन रहा । इस समय जीवक कौमारभृत्य मगधराज के पास बैठा था । मगधराज ने उसकी ओर संकेत करते हुए कहा - "सौम्य जीवक ! तुम बिलकुल मौन क्यों हो ?” १ - दीर्घनिकाय - सामञ्ञफलमुत्त ११२ २ - यह मगध देश की राजधानी थी । मगध देश वर्तमान गया तथा पटना जिले के बीच फैला हुआ है। तात्कालिक समृद्धिशाली नगरों में वह एक था । प्रचुर वैभव के कारण ही वह मगध देशतिलक तथा सर्वकामप्रद कहलाता था । पाँच पर्वतों के मध्य स्थित होने के कारण वह पंचशेलपुर के नाम से भी प्रख्यात था । ३ - राजगृह का प्रमुख राजवैद्य ।
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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