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[१५ ] (क) श्री ज्योतिप्रसाद जैन M.A.,LL.B.,Ph.D. . Director, The World Iain Mission)
बेन और बौद्ध (वाचक- सत्यरंजन बननी। अब प्रश्नोत्तर का भी कार्यक्रम चला।
लेखों के बावनोपरान्त भी मोहनलालजी बाँठिया ने समागत विद्वानों को परिषद् के निमित्त अग्रिम नये सुझाव पेश करने हेतु माहान किया।
विचार-विमर्श के पश्चात् प्रथम अधिवेशन में गृहीत निम्नलिखित प्रस्ताव पुनाहीत हुए।
१-यह निश्चय हुआ कि दर्शन परिषद् के इस अधिवेशन में जो शोधपत्र पढ़े गये है, उनको सम्पूर्ण या संक्षिप्त रूप में कार्य-विवरणी के साथ प्रकाशित किया जाए।
२-यह निश्चय हुआ कि विदेशी प्राच्य विद्वानों तथा शोधकों से सम्पर्क स्थापित किया जाए और उनको इस परिषद् की कार्य विवरणी भी प्रकाशित होने से भेजी जाए।
३-यह निश्चय हुआ कि शोध के विषयो की सूची प्रस्तुत की जाए और उसका वितरण और प्रचार किया जाए।
४--यह निश्चय हुआ कि प्रकाशित पुस्तकों की भूल, भ्रान्ति की तरफ सम्पादक, लेखक और प्रकाशक का ध्यान आकर्षित किया जाए।
५-यह निश्चय हुआ कि जेन विलिओग्राफी भी यथा-पेरिस विवलिओग्राफी या बौद्धो के अनुरूप प्रस्तुत की जाए।
६-यह निश्चय हुआ कि जेनेतर साहित्य में जैन सम्बन्धी निर्देशों को एकत्रित करना चाहिए।
७-यह निश्चय हुआ कि जैन दर्शन तथा प्राकृत भाषा की शिक्षा भारतीय विश्वविद्यालयों में, स्नातकोत्तर श्रेणियों में प्रारम्भ हो, ऐसा प्रयल करना चाहिए।
८-यह निश्चय हुआ कि जेन प्रकाशन संस्थाओं तथा जैन पत्रों की सूची प्रस्तुत की बाए।
-यह निश्चय हुआ कि जेन विद्वानों या जैन विषयों में रुचि लेनेवाले जेमेतर विद्वानों की सूची प्रस्तुत की जाए।
१-यह निश्चय हुआ कि इस परिषद को एक संस्थान का रूप दिया जाए तथा इसका नाम 'जैन दर्शन और संस्कृत परिषद' रखा जाए।