SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ ] कुछ चिन्तनीय विषय आज जैन विद्वानों के लिए विशेष चिन्तन का विषय है कि सभी जैन सम्प्रदाय अलग-अलग रहते हुए भी एकत्व के धागे में कैसे बंध सकते हैं! उसके अभाव में कई ऐसे महत्वपूर्ण कार्य है जो इतने प्रभावोत्पादक नहीं बन पा रहे हैं। संवत्सरी और महावीर जयन्ती ये दो पर्व तो ऐसे है जो समस्त जेनों के लिए मान्य एवं अत्यन्त महत्त्व के हैं। पर अलग-अलग होने के कारण दूसरे लोगों में असमंजस पैदा करते हैं। यपि इन वर्षों में महावीर जयन्ती तो अब एक सामूहिक रूप से मनाई जाने लगी है परन्तु पर्यषण-पर्व के लिए चिन्तन की अपेक्षा है। मेरे विचार से संवत्सरी की एक तिथि निश्चित हो जानी चाहिये, फिर चाहे उस पर्व को कितने ही दिन मनाया जाय कोई धापत्ति नहीं। ___ क्या इसी तरह अन्य पो तथा ऐतिहासिक स्थलों के लिए भी चिन्तन हो सकता है? मेरी तो दृढ़ मान्यता है कि यदि सामूहिक रूप से यह काम प्रारम्भ हुआ तो बहुत ही शीन सौहार्दपूर्ण वातावरण तैयार हो जाएगा। मैं आशा करता हूँ कि समागम विद्वान् इन विचारों पर विशेष मनन करेंगे और इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए कटिबद्ध होंगे। सभी के सहयोग तथा श्रम से सफलता निश्चित है। अन्तिम अन्तरंग अधिवेशन दिनांक २८-१०-६४ मध्यान्हकालीन समय ( कालकोठड़ी में ) जैन दर्शन एवं संस्कृति परिषद् का अन्तिम अन्तरंग गोष्ठी का कार्यक्रम आचार्यश्री के तत्वावधान में उनके मंगल सूत्रोच्चारण के साथ प्रारम्भ हुआ, जिसमें केवल विदद-मण्डली एवं साधु-साध्वियाँ आदि ही उपस्थित थे। गोष्ठी के प्रारम्भकाल में अन्यान्य विद्वानों के शोध-पत्र पढ़े गये(१) श्री एल. एम. जोशी M. A., Ph. D. Antiquity And Origin (युनिवर्सिटी ऑफ गोरखपुर) of Jaio Iconography (वाचक श्री रामचन्द्र जैन) (२) साध्वीश्री फूलकुमारीजी जैन धर्म को कुन्दकुन्द की देन (३) साध्वीश्री यशोधराजी --महावीर कालीन धार्मिक परम्पराएं (४) साध्वीश्री मन्जुलांनी -जेन दर्शन और पाश्चात्य दर्शन का तुलनात्मक अध्ययन (५) भी अमरचन्दजी नाहटा (वाचक श्री मोहनलाल बाठिया) प्रश्न व्याकरण-एक अध्ययन
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy