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११-यह निश्चय हुबा कि परिषद् का अगला अधिवेशन स्थासम्भव आचार्यश्री एलसी के सानिध्य में हो।
१२-यह निश्चय हुआ कि परिषद् का जो संस्थान या रूप (फारम) बने उसका संचालन या व्यवस्था वर्तमान में श्री जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा, कलकत्ता करें।
१३ - यह निश्चय हुआ कि पठित शोध-पत्रों के १५ पुनर्मुद्रण (रीप्रिंट ) गृहस्थ-शोध वाचकों को भेजी जाए।
१४-यह निश्चय हुआ कि परिषद् के संजोजकों में से एक संयोजक भी मोहनलाल बांठिया रहें। ___ १५ - यह निश्चय हुआ कि दर्शन परिषद् का 'आदर्श वाक्य' (मोटो) 'अप्पणा सच्चमेसिज्जा' रहेगा।
१६--यह निश्चब हुआ कि सदस्यों का एक रजिस्टर रखा जाए, जिसमें सदस्यों के नाम वास-स्थल और कार्य-स्थल के ठिकाने रहें।
१७-यह निश्चय हुआ कि राजकीय शिक्षा विभागों को परिषद के अधिवेशन की सूचना भेजी जाए।
१८-यह निश्चय हुआ कि भारत सरकार के संस्कृति विभाग तथा विदेशी राजदूतों के सांस्कृतिक अटेची को भी परिषद् की सूचना भेजी जाए।
१६-यह निश्चय हुआ कि परिषद् में पढ़े जाने वाले सभी शोध-पत्र लिखित हों तथा घे (समरी) सार सहित अग्रिम प्राप्त होने चाहिये।
२०-~-यह निश्चय हुआ कि दो हजार पाँच सौ वर्ष की महावीर जयन्ती विशेष रूप से मनाई जाए। ऐसी व्यवस्था परिषद् कार्यालय करे।
तदनन्तर निम्नलिखित प्रस्ताव सर्वसम्मति से गृहीत हुए।
(२१) शोध कार्य के लिए आगम और सिद्धान्त अन्यों की उपलब्धि की व्यवस्था परिषद शोधक के लिए करे।
(२२) भारत के बाहर जैन धर्म सम्बन्धित जो तत्त्व पाये गये हैं उस विषय का अलग एक विषय भी विवेचनों के विषयों में रखा जाय।
(२३) परिषद् में पढ़े जानेवालों शोध पत्र मौलिक तथा अन्य जगह पठित या प्रकाशित न हो।
(२४) परिषद के निम्नलिखित दश्य पुनः समर्थित हुए। (1) To bring together scholars interested in Jainism or in any
of its aspects.