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भाषा भी सम्मिलित है । तदनन्तर आगमोदय समिति का सटीक संस्करण निकला। अजित देव सूरि रचित दीपिका देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्धार फन्ड से प्रकाशित होने की योजना है। वैसे प्रश्न व्याकरण के टब्बे की तो बहुत-सी प्रतियां मिलती हैं ।
प्रस्तुत आगम के प्राचीन संस्करण में तो बहुत-सी विद्यायें सम्मिलित थीं इसलिये उसका विशेष महत्व था ही पर उपलब्ध संस्करण भी कई दृष्टियों से बहुत ही महत्वपूर्ण है । ५ आश्रव और ५ संवर द्वार के सम्बन्ध में स्वतन्त्र रूप से यही एक ग्रन्थ है। इतना ही नहीं, प्रासंगिक रूप में इसमें बहुत-सी ऐसी बातें उल्लिखित हैं जिनसे प्राचीन संस्कृति की अच्छी फांकी मिलती है। अतः सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस ग्रन्थ का महत्व है । ५ आश्रव और अहिंसा के पर्यायवाची नाम भी शब्दकोश की दृष्टि से महत्व के है। 1 अनेक प्रकार के जीव-जन्तुओं का उल्लेख हुआ है। हिंसा के कारण, हिंसक लोग, जाति व देश, हिंसा का फल, नरक यातना, इसी तरह चोरी करनेवाले और उनको मिलने वाले दण्ड आदि का वर्णन तत्कालीन दण्ड-व्यवस्था की अच्छी जानकारी देता है । उस समय के सामुद्रिक व्यापार की भी कुछ फांकी मिल जाती है। चौथे आश्रव द्वार के प्रसंग में श्रीकृष्ण और उनके परिवार का वर्णन है। इस वर्णन में श्रीकृष्ण की जीवन-घटनाओं के कुछ महत्वपूर्ण संकेत मिलते हैं। स्त्रियों के लिये जो संग्राम हुये उसके उदाहरण में सीता, द्रौपदी, रुक्मणी, पद्मावती, तारा, कांचना, रक्त सुभद्रा, अहिल्या, स्वर्णगुलिका, किन्नरी, स्वरूपवती, विद्युन्मती, रोहिणी का नामोल्लेख है। इनमें से कांचना, अहिन्निका, किन्नरी, स्वरूपा और विद्युन्मती के कथा प्रसंग तो अज्ञात से हैं ।
इस सूत्र में बहुत-से देशों, म्लेच्छ जाति, शस्त्र, बत्तीस लक्षण, रत्न, वस्त्रालंकार, मुनि उपकरण, वाद्य, स्त्री-पुरुष कला, आदि अनेक बातों का उल्लेख प्रासंगिक रूप में हुआ है । कुछ व्याकरण सम्बन्धी उल्लेख है । युद्ध आदि का वर्णन भी महत्वपूर्ण है। संक्षेप में प्राचीन संस्कृति के अध्ययन की अच्छी सामग्री इस सूत्र में पाई जाती है, इतना ही कहना पर्याप्त होगा क्योंकि विशेष विवरण देने का यहाँ अवकाश नहीं है।
इस सूत्र का गुजराती अनुवाद मुनि छोटालालजी ने सं० १९८६ में अहमदाबाद में किया था जो श्री लाघाजी स्वामी पुस्तकालय, लींबड़ी से उसी संवत् में प्रकाशित हो चुका था। इस सूत्र का एक सुन्दर संस्करण हिन्दी अनुवाद संस्कृत वाया और टिप्पणियों के साथ हस्तीमलजी सुराणा, पाली ने