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सन् १९५० में प्रकाशित किया था। स्थानकवासी मुनि हस्तीमलजी ने इस संस्करण को तेयार करने में काफी श्रम किया है। परिशिष्ट में शब्दकोश और टिप्पणियाँ देकर इस संस्करण का महत्व और भी बढ़ा दिया है। अन्त में पाठान्तर भी दिये गये हैं। प्रारम्भ में प्राकथन भी महत्व का है। अर्थात् सभी दृष्टियों से यह संस्करण अपना विशिष्ट स्थान रखता है। वैसे इसके बाद सं० २००६ में घेवरचन्दजी बांठिया के अनुवाद के साथ अगरचन्द भेरुदान सेठिया के यहाँ से भी इसी ग्रन्थ का संस्करण प्रकाशित हो चुका है।
स्थानकवासी मुनि घासीलालजी ने स्था० सम्प्रदाय मान्य हर आगमों पर संस्कृत टीका और हिन्दी, गुजराती अनुवाद तैयार किये हैं उनमें भी प्रश्न व्याकरण प्रकाशित हो चुका है। मूल पाठ को पुफ्फ भिख्खुजी ने 'मुत्तागम' में प्रकाशित किया है। और सागरानन्द सूरिजी ने पालीताणा के आगम मंदिर में जब सूत्रों को शिलापट पर खुदवाये थे उस समय आगमों के मूल पाठ को बड़े अक्षरों में छपवाया गया था, उसमें प्रश्न व्याकरण है ही। तदनन्तर सूरत में ताम्र पत्रों पर आगम खुदवाये गये थे। अभी मुनि पुण्य विजयजी ने अनेक प्रचीन हस्तलिखित प्रतियों के आधार से इस ग्रन्थ का सर्वोत्तम संस्करण तैयार किया है। इस तरह इस आगम के सम्बन्ध में समयसमय अनेकों व्यक्तियों ने उल्लेखनीय कार्य किया पर अभी सांस्कृतिक अध्ययन प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है।
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