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आचार्य विजयपद्मसूरि ने अपने 'श्री जैन प्रवचन किरणावली' के पृष्ठ २८१ में और प्रो० हीरालाल कापड़िया ने 'आगमो नुं दिग्दर्शन ग्रन्थ के पृष्ठ ११३ में प्रश्न व्याकरण के उपरोक्त विषयों की चर्चा करते हुये लिखा है कि " नन्दी सूत्र में उल्लिखित विषयोंवाला भाग विच्छेद या लुप्त हो गया है, उसके अतिरिक्त अन्य भाग विद्यमान हैं। पर वास्तव में यह कथन सही नहीं है। क्योंकि समवायांग और नन्दी सूत्र में यह कहीं भी नहीं कहा गया कि प्रश्न व्याकरण में ५ आश्रमों और ५ संवरों का निरूपण है। उन दोनों ग्रंथों में इस सूत्र के ४५ अध्ययन बतलाये गये हैं। पर उपलब्ध संस्करण में उतने अध्ययन भी नहीं हैं।
अब हमारा ध्यान स्थानांग सूत्र के १० वें स्थान में उल्लिखित "पण्हा वागरणदसा' की ओर जाता है। उसमें इस ग्रन्थ के १० अध्ययन बतलाये गये हैं । यद्यपि वर्तमान में प्राप्त प्रश्न व्याकरण सूत्र में भी ५ आश्रव और ५ संवर रूप १० द्वार है पर स्थानांग सूत्र में इसके १० अध्ययनों के जो नाम दिये हैं वे प्राप्त सूत्र से मेल नहीं खाते । स्थानांग में १० अध्ययनों के नाम ये हैं"पण्हावागरण दसाणं दस अज्मयणा पं० तं ० -- (१) उबमा, (२) संखा, (३) इतिभासियाई, (४) आयरिय भासियाई, (५) महावीर भासियाई, (६) खोमग परिणाई, (७) कोमल पसिणाई, (८) अद्दाग परिणाई, (६) अंगुठ्ठ परिणा, (१०) बाहुपसिणाहं ।”
दूसरी बात यह भी है कि पण्हावागरण अर्थात् प्रश्न व्याकरण सूत्र के इस नाम से यह ध्वनित होता है कि इसमें प्रश्न पूछे गये हैं और उनका उत्तर दिया गया है । पण्हावा गरणाई अर्थात् प्रश्नव्याकरणानि यह बहुवचनान्त पद है, इससे इस सूत्र में बहुत से प्रश्नोत्तर होने चाहियें पर वर्तमान में जो प्रश्न व्याकरण उपलब्ध है उसमें तो न प्रश्न पूछा गया हैन उत्तर दिया गया है। पर बिना पूछे ही जम्बू स्वामी को आश्रव और संवरवाले कहने का उल्लेख किया गया है । यथा
प्रवचनों का सार
" जम्बू ! इणमो अण्हय-संबर - विणिच्छयं पवयणस्स निस्संद | वोच्च्छामि जिच्छयत्यं, सुहासिथत्यं महेसीहि || १ || "
निष्कर्ष यह है कि उपलब्ध आगम नन्दी, स्थानांग, समवायांग में उलिखित प्रश्न व्याकरण से भिन्न ही है।
अब प्रश्न यह रह जाता है कि प्राचीन प्रश्न व्याकरण कब लुप्त हुआ और वर्तमान प्रश्न व्याकरण ने उसका स्थान कब ग्रहण किया ? इस सम्बन्ध में मेरे