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________________ [ १४४ ] विचार सुकाव बतलाने से पूर्व दिनम्बर ग्रन्थों में प्रश्न व्याकरण का विषय free किस रूप में मिलता है; इसको भी जरा देख लेना जरूरी है। यद्यपि दिगम्बर मान्यता के अनुसार तो ११ अंग आदि सभी प्राचीन आगम लुप्त हो चुके हैं फिर भी षट्खंडागम, तत्वार्थवार्तिक आदि में ११ अंगों का जो विषय वर्णन बतलाया गया है उससे दिगम्बर विद्वानों की इस सम्बन्ध में क्या मान्यता या परम्परा रही है इसकी कुछ काकी मिल ही जाती है। पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री 'जैन साहित्य का इतिहास - पूर्व पीठिका' के पृष्ठ ६६८ में लिखा है "प्रश्न व्याकरण-- आक्षेप और विक्षेप के द्वारा और नय के आश्रित प्रश्नों के व्याकरण को प्रश्न व्याकरण कहते हैं। उनमें लौकिक और वैदिक अर्थों का निर्णय किया जाता है। " आक्षेपविक्षेप हेतुनयाश्रितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरण, तस्मिल्लौकिकवेदिकानामर्थानां निर्णयाः” ( त० वा० पृ० ७२ ) आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेदनी, निवेदनी, इन चार कथाओं का निरूपण करता " है... यह अंग प्रश्न के अनुसार नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख-दुःख, जीवित, मरण, जय, पराजय, नाम, द्रव्य, आयु और संख्या का भी प्ररूपण करता है ( षट्खं० पृ० १०५ ) ( क० पा० भा० १ पृ० १३१ ) प्रश्न व्याकरण में एक सौ आठ प्रश्न, एक सौ आठ अप्रश्न और एक सौ आठ प्रश्नाप्रश्नों का कथन रहता है। अन्य भी अनेक विद्यातिशयों का तथा नागकुमार, सुपर्णकुमार तथा अन्य भवनवासी देवों के साथ साधुओं के दिव्य सम्वादों का वर्णन रहता है । ( नन्दीसूत्र ५५ । समवा० सू० १४५ ) ।” O अब यहाँ एक प्रश्न और उपस्थित होता है कि क्या षट्खण्डागम और तत्वार्थवार्तिक के समय तक उनमें उल्लिखित विषयवाला प्रश्न व्याकरण प्राप्त था या सुनी-सुनाई परम्परा के आधार से उन्होंने इसका विषय निरूपण किया है ? यह तो निश्चित है कि इस ग्रन्थ में अनेक प्रकार के प्रश्नों की व्याख्या या उत्तर था । पर श्वेताम्बर और दिगम्बर ग्रन्थों के विषय निरूपण में जो थोड़ी भिन्नता है वह भी विचारणीय है ही दिगम्बर ग्रन्थों में उल्लिखित विषय भी प्राप्त प्रश्न व्याकरण में नहीं मिलते। साधारणतया तो यही विचार होता है कि नंदी सूत्र के निर्माण समय तक और वीर निर्वाण ६८० में देवधिं गणि ने आगमों को लिपिबद्ध किया तब तक तो स्थानांग, समवायांग और नंदी में उल्लिखित विषयों वाले आगम विद्यमान होंगे ही : पर यह बात निश्चित रूप से नहीं कहीं जा सकती क्योंकि अन्य आगमों के सम्बन्ध में भी जो विवरण इन ग्रन्थों में मिलते हैं वे उपलब्ध
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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