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________________ [ १३८ ] हैरेक्लीट्स ने तत्वों की व्याख्या करते हुए कहा है- " जो क्षणिक है वह अवश्य ही सापेक्ष है। समुद्र का पानी मछली के लिए मीठा और हमारे लिए खारा है 1 हम हैं भी और नहीं भी । हम सत् भी हैं, असत् भी हैं और अनिर्वचनीय भी । जितने भी द्वन्द्व है सब सापेक्ष हैं। जैसे- एक अनेक, अच्छा-बुरा, गति- स्थिति, परिणाम- सत्ता, जीवन-मरण, सर्दी-गर्मी, यह पक्ष विपक्ष का विरोध समन्वय को उत्पन्न करता है ।" इसी प्रसंग को पुष्ट करने के लिए दो दृष्टान्त दिये - " जब धनुष चलाया जाता है तो चलानेवाले के दोनों हाथ विरोधी दिशाओं में खींचते हैं, पर लक्ष्य उनका एक ही है। वीणा के तार विभिन्न रीति से खींचे जाते हैं फिर भी वे विभिन्न स्वर एक ही राग को उत्पन्न करते हैं । " इसी तरह प्रोफेसर गाम्पर्ज ने कहा है – “सत् जड़ और चेतन उभय रूप है । " " जॉन लोक -- " मनुष्य की आत्मा सक्रिय भी है और निष्क्रिय भी । ” 3 टॉमसहोब्स ने कहा- “निरपेक्षित अच्छाई कोई चीज नहीं, अच्छाइयाँ सदा सापेक्षिक ही होती हैं । ४ हर्बर्ट ने स्याद्वाद को घटित करने के लिए एक नई उक्ति लगाई है। वे कहते हैं---" पदार्थ में गुण अनेक न होकर सत् अनेक होते हैं। तभी एक व्यक्ति पुत्र के सम्बन्ध से पिता ; पिता के सम्बन्ध से पुत्र आदि होता है; " अथवा पदार्थ एक ही रहता है, सम्बन्ध बदलने से दूसरा दिखाई देता है । आइंस्टीन ने कहा – “हम केवल आपेक्षिक सत्य को ही जान सकते हैं। सम्पूर्ण सत्य तो सर्वश के द्वारा ही ज्ञात है । $ - इन कतिपय स्थलों से हम अनुमान लगा सकते है कि दो विपरीत दिशागामी दर्शनों में कितना साम्य है, जैसे एक ही स्रोत के दो प्रवाह हों। यहाँ मैंने जैन दर्शन की कुछेक साक्षियों और कुछेक उद्धरणों का ही उल्लेख किया है और पाश्चात्य दर्शन की एक तथ्य को पुष्ट करनेवाली अनेक साक्षियों का । १ - पाश्चात्य दर्शन पृ० ५ २ - पाश्चात्य दर्शन ३ - पाश्चात्य दर्शन का इतिहास - फ्रैंकथिली पृ० ७५ ४ - वही पृ० २१ ५ - पाश्चात्य दर्शनों का इतिहास - गुलाबराय, एम०ए० पृ० २३०,३१ ६ - कांस्मोलोजी ओल्ड एण्ड इण्डिया पृ० २०१ -
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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