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________________ [ १३५ ] नकल ही रह जाती है, जिसे प्रत्यय या धारणा कहते है । दुःख या सुख का यह अवशेष प्रत्यय कई अनुमुद्राएं उत्पन्न करता है। स्मृति और कल्पना में फिर इनकी नकल होती है। ह्यूम ने बौद्धों द्वारा सम्मत ज्ञान के अर्थोत्पन्न रूप का भी समर्थ खण्डन किया है। उन्होंने कहा- हम दो' प्रत्यक्षों में कार्य-कारण सम्बन्ध देखते हैं, इस सम्बन्ध को प्रत्यक्ष और वस्तु में नहीं देखते अतएव हम प्रत्यक्ष को वस्तुजनित नहीं मान सकते । १३ वर्कले ने भी यही बात कही - "आत्मा' ही विज्ञानों का आभय है ।' जैन-दर्शन में धारणा, स्मृति और ज्ञानोत्पति के बारे में जो कुछ कहा गया है वह उपरोक्त मान्यताओं से भिन्न नहीं है। जैन दर्शन ने ज्ञान की अवस्थिति को धारणा कहा है और वही आगे जाकर स्मृति का कारण बनती है। ज्ञान को जैन- दर्शन ने भी 'तदुत्पन्न' ( पदार्थोत्पन्न ) नहीं माना है ; अपितु आत्मा का गुण माना है । ४ पुनर्जन्म पुनर्जन्म सम्बन्धी मान्यता केवल जैन-दर्शन की ही नहीं, लोकायतों को छोड़कर मात्र भारतीय दर्शनों की है। जैन दर्शन ने आत्मा की सिद्धि के लिए पुनर्जन्म को माध्यम बनाया है । " उत्तराध्ययन सूत्र में एक स्थान पर मुनि को कहा गया है-- " आप इस लोक में भी उत्तम हैं और परलोक में भी उत्तम होंगे | १६ काण्ट ने मुक्तात्मा को सर्वोपरि सत् बतलाते हुए कहा - "सर्वोपरि सत् की प्राप्ति आगामी जीवन में ही हो सकती है । ७ तथा सुकरात ने कहा - "भले आदमी के लिए परलोक में कोई भय नहीं . ।" उपरोक्त तथ्यों के आधार पर पृ० १११ १ २ - पाश्चात्य दर्शन ३- तस्याबस्थितिः धारणा' " "" " 35 'इयमेव स्मृतेः परिणामिकारणम् । ( न्यायक वि० २ सू० १ ) ४ -- उपयोगलक्षणो जीवः ( जैन० प्र० २ सू० २ ) ५ - प्रेत्य सद्भावाच्च ( न्याय० वि० ७ सू० ८ ) ६ - इह सि उत्तमो भन्ते पेञ्चा होहिसि उत्तमो ( उ० अ० गा० ) ७ - पाश्चात्य दर्शन का इतिहास - फ्रैंकथिली पृ० १८१ ) G ६- पाश्चात्य दर्शन
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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