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। १२३ ] (१२) स्याहारा केवल कक्षा की काल खाने वाले। (३३) पत्ताहारा-केवल पत्र खाने वाले। (३४) पुप्फाहारा-केबल पुष्प खाने वाले। (३५) बीयाहारा-केवल बीज खाने वाले। (३६) परिसडियकंदमूलतयपत्तपुष्फफलाहारा-कंदमूल, काल, पत्ता, पुष्प
__ और फल खाने वाले। (३७) जलाभिसेयकठिनगायमूला-बिना स्नान भोजन न करने वाले। (३८) आयावणाहि-थोड़ा आतप सहन करने वाले । (३६) पंचग्गितावेहिं-पंचाग्नि तापने वाले। (४०) इंगालसोल्लियं-अंगार पर सेंक कर खाने वाले । (४१) कण्डसोल्लिययं-तवे पर सेक कर खाने वाले। (४२) कहसोल्लियं-लकड़ी पर पका भोजन करने वाले।
इनके अतिरिक्त इसी सूत्र में निम्नलिखित अन्य तापसों का भी उल्लेख मिलता है :
(१) अत्तुकोरिया-आत्मा में ही उत्कर्ष मानने वाले। (२) भूइकम्मिया-ज्वर आदि उपद्रव के रक्षार्थ भूतिदान कर भिक्षा
माँगने वाले। (३) मुज्जो-भुज्जोकोउपकारका-सौभाग्यादि के निमित्त स्नानादि
करने वाले कौतुक कारक। इनके अतिरिक्त फुटकर रूप में कुछ तापसों का उल्लेख मिलता है(१) धम्म चिन्तक-धर्म-शास्त्र पाठक । (२) गोव्वइया-गोव्रत धारण करने वाले। (३) गोअमा-छोटे बैल को कदम रखना सिखलाकर भिक्षा माँगने
वाले।
औपपातिक के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों में भी कुछ तापसों का उल्लेख मिलता है। जैसे
(१) चण्डी देवगा-चक्र को धारण करने वाले चण्डी के भक्त। (२) वग सोयारिय-सांस्यमत के अनुयायी जो जल बहुत गिराते हैं। १-औ० सू. ४१ प० १६६ १-ओ० सू० १८ प० १६८ २-० १११५४ १० १। नियुक्ति ई-पिण्ड नि० ३१४ गा.