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(३) कम्मार भिक्खू' - देवताओं की द्रोणी लेकर मिक्षा माँगने वाले । (४) कुब्बीए - कूर्चन्धर - दाढ़ी रखने वाले ।
(५) पिंडोलवा - भिक्षा पर जीवन निर्वाह करने वाले ।
(६) ससरक्ख * -- सचित्त रजोयुक्त- धूलिवाला तापस ।
(७) वणीमग याचक ।
(८) वारिभद्रक ५ - पानी में कल्याण मानने वाले ।
(६) वारिखल-मिट्टी से बारह बार भाजन शुद्ध करने वाले । (१०) आरणिया अरण्य में रहने वाले । (११) आवसात्थिम्ग - आवसथों में रहने वाले ।
(१२) ग्रामणियतिया - ग्राम के समीप रहने वाले ।
(१३) कण्हुई रहस्सिया - किंचित् रहस्य वाले, जैसे मन्त्र होम ।
जैन साहित्य के समान बौद्ध साहित्य में भी अनेकविध श्रमण-ब्राह्मणों की तपस्याओं का उल्लेख मिलता है। जैसे—
" आस गौतम ! उन श्रमणों और ब्राह्मणों की ये तपस्याएं श्रमण-ब्राह्मण भाव की द्योतक है - ओखल के मुँह से निकाली भिक्षा, ठहरिये कहकर दी गई मिक्षा, दो भोजन करने वालों के बीच से लाई हुई भिक्षा, गर्भिणी स्त्री द्वारा लाई हुई भिक्षा, दूध पिलाती स्त्री द्वारा लाई हुई मिक्षा, अन्य पुरुष के पास स्त्री द्वारा लाई भिक्षा, निमन्त्रित भिक्षा, चन्दा वाली भिक्षा और बुलाई मिक्षा का त्याग रखते हैं। होली के भिक्षा का त्याग, वहाँ से भी नहीं जहाँ कुत्ता खुला हो, वहाँ से भी नहीं जहाँ मक्खियाँ भन भन कर रही हों, न मांस, न मछली, न सुरा, न कच्ची शराब (तुषोदक ) ग्रहण करता है, वह एक ही घर से जो मिक्षा मिलती है, लेकर लौट जाता है, एक ही कौर खाने वाला होता है । दो घर से मिली भिक्षा में दो ही कौर खानेवाला, सात घर से मिली भिक्षा से सात कारखाने वाला, वह एक ही कलछी खाकर रहता है, यावत् दो- सात, वह एक दिन बीच देकर के भोजन करता है, दो-दो दिन यावत् सात-सात । इस
१- वृ० भा०
२- वृ० 'क' भा० पृ० ७४८
३ उत्त० चू० १३८ ।
४-आ० सू० २२१२६३
५- बृहत्कल्प भा० ५१३ प० । ६- सू० चू० ३४६