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(४) अमराविक्षेपबाद - अमराविक्षेप नामक छोटी-छोटी मछलियाँ बड़ी चंचल होती है। जिस तरह बहुत प्रयत्न करने पर भी वे हाथ में नहीं जाती, इसी तरह इनके सिद्धान्तों में भी कोई स्थिरता नहीं है। चार कारणों से ये प्रश्नों का उत्तर देने में घबराते हैं ।
(५) अकारणवाद -- दो कारणों से आत्मा और लोक को अकारण उत्पन्न मानने वाले । अन्त की समय की ४० धारणाएं हैं।
(६) मरणान्तर होश वाला आत्मा - १६ कारणों से आत्मा मरने के बाद संज्ञा वाली रहती है ।
(७) मरणान्तर वेहोश आत्मा - आठ कारणों से मरने के बाद आत्मा संज्ञा बाली नहीं रहती ।
(८) मरणान्तर न होश न बेहोश आत्मा - आठ कारणों से न संज्ञा वाली और न असंज्ञा बाली ।
(६) आत्मा का उच्छेद -- सात कारणों से आत्मा का उच्छेद मानले वाले । (१०) इसी जन्म में निर्वाण -पांच कारणों से षष्ठ धर्म निर्वाण का कथन करने वाले ।
कुल मिलाकर इन बासठ कारणों से पूर्वान्त कल्पिक और उपरान्त कल्पकों का जिक्र किया गया है।
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जैन साहित्य में उल्लिखित तीन सौ तिरसठ मत इस प्रकार हैंक्रियावादी - आत्मा, कर्म, पुनर्जन्म, मुक्ति आदि सिद्धान्तों में विश्वास रखने वाले। इन क्रियावादियों के १८० भेद होते हैं। जैसे जीव अजीव आदि नव पदार्थों के हर एक के काल, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा के आश्रय से स्वतः परतः, नित्य और अनित्य इस विकल्पद्वय से १८० भेद किये गए हैं यथाः
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जीव
परतः, नित्य, अनित्य
स्वतः (१) काल की अपेक्षा (२) ईश्वर की अपेक्षा
(४) आत्मा की अपेक्षा
(४) नियति की अपेक्षा
(५) स्वभाव की अपेक्षा
जैसे अकेले जीव के २० मेद हुए इसी प्रकार अजीब आदि पदार्थों के भी समने चाहिये ।
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