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________________ [ ११३ ] अवकाश या पोल कहता है। इस वाद को अन्योन्यवाद कहा गया। यह सब पदार्थों को वन्ध्य और नियत मानता है। इसलिए इसे अक्रियावाद भी कहा जा सकता है। इसका वर्णन सूत्रकृतांग में इन शब्दों में किया गया है"सूर्य न उदित होता है और न अस्त होता है, चन्द्रमा न बढ़ता है और न घटता है। जल प्रवाहित नहीं होता है, वायु बहती नहीं है, यह समूचा लोक वन्ध्य और नियत है।" (६) छठे बड़े संघ का आचार्य संजय वेलहिपुत्र था। उसका कहना था"परलोक है या नहीं मैं नहीं जानता। परलोक है यह भी नहीं, परलोक नहीं है यह भी नहीं...अच्छे या बुरे कर्मों का फल मिलता है, यह भी मैं नहीं मानता । वह रहता भी है, नहीं भी रहता। तथागत मृत्यु के बाद रहता है या नहीं रहता, यह मैं नहीं समझता ; वह रहता है यह भी नहीं, वह नहीं रहता यह भी नहीं” इस वाद को विक्षेपवाद या अनिश्चिततावाद कहते थे। विक्षेपवाद का समावेश अशानवाद में किया जा सकता है। सूत्रकृतांग में अशानवादी को तर्क करने में कुशल होने पर भी असंबद्धभाषी कहा गया है। क्योंकि वह स्वयं संदेह से परे नहीं हो सका है। यह इस अभिमत की ओर संकेत है। दीघनिकाय में बासठ दार्शनिक मतों का उल्लेख मिलता है। जिनमें आदि के सम्बन्ध की १८ धारणाएं हैं। जैसे (१) शाश्वतवाद-चार कारणों से आत्मा और लोक को नित्य मानने वाले। (२) नित्यता-अनित्यतावाद-चार कारणों से आत्मा और लोक को अंशतः नित्य और अंशतः अनित्य मानने वाले। (३) सान्त-अनन्तवाद-चार कारणों से लोक को सान्त और अनन्त मानने वाले। १-णाइच्चो उएइ ण अत्थमेति, ण चंदिमा वकृति हायती वा। सलिला ण संदंति ण वंति वाया, वमो णियतो कसिणे हु लोए । -सू०१११राण २-अण्णाणिया ता कुशला विसंता, असंथुयाणो वितिगिच्छतिन्ना। अकोविया आहु अकोवियेहि, अणाणुवीइचुमुसंवयंति ॥१० १११२२ २-दी० नि• • सु० (ब्रमजाल मुत्त)
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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