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________________ [ १०४ 1 गन्बं द्रव्य के पुद्गल अनुकूल' हवा में बहुत जल्दी हमारे नाक तक पहुँच जाते हैं। प्रतिकूल हवा में पार्श्वस्थित मनुष्यों के पास भी नहीं पहुँचते । इसी प्रकार अनुकूल हवा में शब्द बहुत जल्दी सुनाई देते हैं, प्रतिकूल हवा में कठिसे । यदि शब्द पुद्गल नहीं है तो यह वायु का व्याघात कैसे हो सकता है ? मेरी आदि से उत्पन्न तीव्र शब्दों को सुनने से मनुष्य कभी-कभी बहरा हो जाता है। कान का पर्दा फट जाता है। यदि उसमें स्पर्श नहीं है, तो बहरे होने का क्या कारण है ? नता गन्ध द्रव्य पौद्गलिक होते हुए भी सघन प्रदेशों में प्रवेश कर सकता है फिर शब्द प्रवेश क्यों नहीं कर सकता ? वास्तविक तथ्य तो यह है कि हम जिसे सघन समझते हैं उसमें भी सूक्ष्म पुद्गल स्कन्धों के लिए बहुत छिद्र रहते हैं। पूर्व और पीछे अवयव तो बहुतसी पौगलिक वस्तुओं को दिखाई नहीं देते। बिजली चमकती है पर कोई भी उसका रूप पूर्व या पीछे देख नहीं सकता । बहुत-सी सूक्ष्म रजें किसी अन्य पदार्थ में हलचल पैदा नहीं करती, फिर भी उनका पुद्गलत्व अस्वीकार नहीं किया जा सकता । अन्य सभी इन्द्रियाँ पुद्गल पर्याय को ग्रहण करती हैं फिर एक श्रोत्रेन्द्रिय अपुद्गल को कैसे ग्रहण कर सकती है ? इन्द्रियो के सभी विषय पौद्गलिक हैं । अपुद्गल इन्द्रिय ज्ञान में बिम्बित नहीं हो सकते । इस प्रकार हर तर्क से शब्द पौद्गलिक प्रमाणित होता है। पुद्गल का धर्म मूर्त है, अतः शब्द भी मूर्त है । मूर्त कभी अमूर्त का गुण नहीं हो सकता । .2 जैन साहित्य में शब्द का गद्यात्मक चिन्तन बहुत ही विचित्र है । बक्ता शब्द वर्गणाओं को तीव्र प्रयत्न से छोड़ता है और मन्द प्रयत्न से भी । मन्द प्रयत्न से मुक्त वर्गणाएं अभिन्न रूप से निकलती है। असंख्यात् अवगाहन वर्गणाओं को लांघने के बाद उनमें भेद होता है। भेद होने के बाद संख्यात् योजन पार करते उनका विध्वंस हो जाता है। उससे आगे उनकी गति नहीं है । तीव्र प्रयत्न से मुक्त शब्द वर्गणाएं भिन्न-भिन्न होकर निकलती है। यह मेद पाँच प्रकार का होता है । खण्ड भेद, प्रतर भेद, चूर्णिका भेद, अनुतटिका मेद, उत्करिका भेद | १ - जैन सि० दी० १८८७ २ - वि० आ० भा० ३८० ३ - विशे० आ० नि० भा० ३८१
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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