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[ १०५ ) १-खण्ड मेद-बांस की तरह टुकड़े-टुकड़े होते हैं। २-प्रतर मेद-अभ्रपटल की तरह मेद होता है। ३-चूर्णिका भेद-प्रक्षिप्त चर्ण की तरह भेद होता है। ४-अनुतटिका-तालाब आदि के फटने पर भेद होता है। ५-उत्करिका भेद-मूंग की फली की तरह मेद होता है।
ये तीव्र प्रयल से प्रेरित भिन्न-भिन्न होकर निकलनेवाली शब्द वर्गणाए . बड़ी सूक्ष्म होती हैं। सूक्ष्म तत्त्व में शक्ति अधिक होती है। अणुशक्ति से आज सारा विश्व भयभीत है। शब्द वर्गणाएं भी सूक्ष्मता के कारण अन्य अनेक भाषायोग्य वर्गणाओं में शब्द शक्ति पैदा करती हुई और अपने में अनन्त गुण वृद्धि करती हुई समय मात्र में लोकान्त तक पहुंच जाती है। शा। समय में सम्पूर्ण लोक को व्याप्त कर लेती है। व्याप्त होने का क्रम जेन समुद्घात' की तरह है। - प्रथम समय में भाषावर्गणा छओं में दण्ड बनाती है। यह दण्ड विस्तार चार अंगुल का होता है। क्योंकि वक्ता का मुख इतना ही चौड़ा होता है। दूसरे समय में दण्ड से सीधी मन्थान की क्रिया होती है । समुद्घात की प्रक्रिया में दण्ड से कपाट बनते हैं, पर शब्द प्रसरण की प्रक्रिया में कपाट की अपेक्षा नहीं रह जाती। क्योंकि समुद्घात की प्रक्रिया में आत्म-प्रदेशों का केवल विस्तार होता है ; संख्या में न्यूनाधिकता नहीं होती। अतः उनका विस्तार क्रमशः होता है। किन्तु शब्द वर्गणा दूसरों में अपनी शक्ति प्रदान करती हुई उनको भी अपने अनुरूप बना लेती है। अतः प्रथम समय में ही उनमें अनन्त गुण विकास हो जाता है। कपाट की इसलिए कोई अपेक्षा नहीं रहती। तृतीय समय में शब्द वगणाएं रिक्त स्थान को पूर्ण कर देती हैं। इस प्रकार तीन समय में ही शन्द सम्पूर्ण लोक को व्याप्त कर लेता है। ४५ समय तो उन्हें क्वचिद लगते हैं। जैसे कोई वक्ता त्रसनालिका से बाहर जाकर किसी दिशा से बोलता है तब नालिका के अन्दर प्रवेश करते उन्हें एक समय लग जाता है। तीन समय में उन्हें फिर अपना विस्तार करना होता है। जब कोई
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१-५० भा०प० १११२८ २-वि० आ०नि० मा० ३८२ ३-वि. बा. नि० मा० ३८३ ४–वि. बा. भा० ३८१८ ५-विशेषा• आ० मा० ३८६