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के अनुसार द्रव्य की मात्रा उसकी गति के बढ़ने पर बढ़ती है। प्रकाश की गति
पर पहुँचने से द्रव्य की मात्रा अनन्त हो जाती है । गेलेलियो और न्यूटन की दृष्टि में शक्ति को पूर्णतः भारहीन माना जाता था; लेकिन आइन्स्टीन के सापेक्षवाद में यह भाररहित तत्व नहीं रहा ; क्योंकि उसमें निश्चित मात्रा में पदार्थत्व है। जैसे तीन हजार टन पत्थर के कोयले जलाने से जितना वाप उत्पन्न होता है उसका वजन लगभग एक माशे के बराबर है । शक्ति को पदार्थ न मानने का केवल यही कारण था कि उसमें अत्यन्त स्वल्प भार होता
आधुनिक युग में द्रव्य को
1 व्यतः उसे भार-शून्य पदार्थ माना जाता है । शक्ति के रूप में पूर्णतः परिवर्तित किया जाता था । जैसे एटम बम के निर्माण में पादार्थिक अणु पूर्णतः शक्ति का रूप धारण कर लेते हैं। लेकिन कोई भी तत्त्व सत् से असत्' नहीं बनता ; यह तर्क - शास्त्र का अकाट्य सिद्धान्त है । विज्ञान का मत भी इससे भिन्न नहीं है । अतः अणु का शक्ति के रूप में परिचला नहीं जाता । निष्कर्ष की भाषा अतः ध्वनि शक्ति रूप होते हुए भी
वर्तन होने पर भी उसका पदार्थत्व कहीं में शक्ति भी पदार्थ से पृथक नहीं रही । भौतिक है। पुद्गलों का सूक्ष्म रूप है
गुण काठिन्य आदि
अनेक भारतीय दार्शनिकों ने भी शब्द को अपौद्गलिक माना है। वैशेषिक और सांख्य मानते हैं - शब्द आकाश का गुण है। क्योंकि गुण अपने गुणी में रहता है । आश्रय पृथ्वी आदि हैं। पर पृथ्वी आदि का धर्म है । इनका गुण शब्द नहीं हो सकता । अतः शेष आकाश का गुण ही शब्द है । आकाश अभौतिक है तो शब्द भी अपौद्गलिक होगा । उसका पुद्गलत्व किसी भी प्रकार से प्रमाणित नहीं होता। क्योंकि शब्द स्पर्श रहित है । अत्यन्त सघन प्रदेशों में उसका प्रवेश रुकता नहीं है। शब्द के पूर्व और पीछे अवयव नहीं होते । वह सूक्ष्म मूर्त द्रव्यों का प्रेरक नहीं है।
जैन- दार्शनिको ने इन प्रश्नों का समाधान बहुत ही युक्तिसंगत दिया है। प्रथम प्रश्न का समाधान देते हुए कहा है-शब्द भाषावर्गणा के पुद्गलों से निर्मित होते हैं । पुद्गल स्पर्श से रहित नहीं होता, फिर तज्जन्य शब्द में स्पर्श क्यों नहीं है ।
- जैन द० आ० वि० पृ० ६६
२- स्याद्वाद मंजरी पृ० १७३
पृ० BY
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