________________ [ 102 ] . जैनागम' कहते हैं कि बका के द्वारा विसर्जित मूल रूप हमें कमी सुनाई नहीं देता। किन्तु हम मिश्रित और वासित शब्दों को ही सुनते हैं। जैसे किसी पुष्प से निकलने वाला गन्ध द्रव्य अनेक रजों से मिश्रित हो जाता है। वह मिश्रित रूप ही नाक तक पहुँचता है। इसी प्रकार वक्ता शब्दों को छोड़ता है। ये शब्द बयों दिशाओं में फैलते हुए सम श्रेणी से चलते हैं। वे अन्य अनेक पुद्गल स्कन्धों से निर्मित हो जाते हैं। सम श्रेणी के श्रोता इन मिश्रित शब्दों को सुनते हैं। ये शब्द अनेक अन्य पुद्गलों को आन्दोलित करते हुए उनमें भी शब्द-शक्ति पैदा कर देते है। वे वासित शब्द कहलाते हैं। विषम श्रेणी के भोता इन वासित शब्दों को सुन पाते हैं। विशान की दृष्टि में ध्वनि तरंगात्मक है। एक तरंग दूसरी तरंग में शब्द शक्ति पैदा करती है। आगे-से-आगे बढ़ती हुई अन्तिम तरंग कान के परदे को तरंगित करती है तब शब्द सुनाई देता है। जैन दृष्टि से, वक्ता द्वारा विसर्जित शब्द के मोलेक्यूल्स भाषा वर्गणा के मोलेक्यूल्स में शब्द शक्ति पैदा कर देते हैं। ये वासित मोलेक्यूल्स शब्द जब इन्द्रिय द्वार को खटखटाते हैं तब ध्वनि सुनाई देती है। ऐसा लगता है कि चिन्तन की इन दो सरिताओं में समान जल बह रहा है। समग्र दृष्टि से एक ही है, यह तो नहीं कहा जा सकता क्योंकि विज्ञान ध्वनि को अभौतिक मानता है शक्ति रूप मानता है। विशन की दृष्टि में ताप प्रकाश विद्युत् चुम्बक ये सभी शक्ति के रूप है ; जैन दृष्टि से ये भौतिक हैं। कोई शक्ति पदार्थ से भिन्न नहीं है। विज्ञान जिसे शक्ति मानता है, जैन दृष्टि से वे सूक्ष्म पुद्गल के रूप हैं। आश्चर्य है कि व्यक्ति और पदार्थ का अन्तर भी आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से मिटता जा रहा है। विज्ञान भी आज फिर से शक्ति को द्रव्य के रूप में मानने लगा है / उन्नीसवों सदी तक यह माना जाता था कि द्रव्य और शक्ति भिन्न-भिन्न हैं। एक दूसरे से स्वतन्त्र है। क्योंकि उनका मत था कि द्रव्यों में शक्ति जोड़ने और घटाने पर किसी भी प्रकार का अन्तर नहीं आता। मात्रा हमेशा वही रहती है। द्रव्य को बिना बाहरी शक्ति दिए काम नहीं कराया जा सकता। शक्ति स्वयं बिना पादार्थिक साधन के व्यक्त नहीं होती। लेकिन उपरोक्त धारणा को आइंस्टीन की 'रिलेटीविटी' थ्योरी ने बदल दिया है। इस थ्योरी १-वि० आ• नि० मा० 54351, 52, 51, 54