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[ 8 ] गाढ़ का ग्रहण नहीं होता। उनमें भी अनन्तरावगाढ़ का ग्रहण होता है, . परम्परावगाद पुद्गल स्कन्धों का ग्रहण नहीं होता। ये पुद्गल स्कन्ध चतुस्पशी होते हैं। औदारिक', वैक्रिय, आहारक तीनों शरीर के द्वारा इनका ग्रहण होता है, वचन योग के द्वारा उनका विसर्जन ।।
भाषा वगणाओं का ग्रहण सान्तर और निरन्तर दोनों प्रकार से होता है। सान्तर की पद्धति में प्रत्येक समय के व्यवधान से पुद्गल स्कन्धों का ग्रहण होता है और उसी प्रकार से निसग भी। यह सान्तर पद्धति का जघन्य रूप है। अधिक से अधिक असंख्यात् समय के अन्तर से ग्रहण होता है। निरन्तर की पद्धति में प्रति समय ग्रहण होता रहता है लेकिन निसर्ग निरन्तर नहीं होता, क्योंकि प्रथम समय में ग्रहण होता है ओर द्वितीय समय में निसर्ग होता है। अगृहीत का निसर्ग होता नहीं। प्रथम समय में केवल ग्रहण होता है। निसर्ग नहीं होता। अन्तिम समय में केवल निसर्ग होता है, ग्रहण नहीं होता। मध्य में ग्रहण और निसर्ग दोनों चालू रहते हैं।
गति विषयक विज्ञान ध्वनि हमारे कानों तक कैसे पहुँचती है, इसके लिए केवल दो ही रूप कल्पना में आ सकते हैं :
१.--ध्वनि उत्पादक स्थान से छोटे-छोटे टुकड़े निकलते हैं, जो इन ऑखों से दिखाई नहीं देते हैं। लेकिन हमारे कानों को छुकर ध्वनि का अनुभव कराते हैं। इस थ्योरी को विज्ञान में करपसक्यूलर थ्योरी कहते हैं ।
२-ध्वनि उत्पादक शक्ति केन्द्र के समान काम करता है। वह हवा में लहरें उत्पन्न करता है। वे लहरे हमारे कान से टकरा कर ध्वनि का अनुभव कराती हैं। इसे विज्ञान में वेभथ्योरी 'लहर का सिद्धान्त' कहते हैं।
। इन दोनो में से विज्ञान ने प्रमाणित प्रयोगों के आधार पर 'वेभथ्योरी' 'लहर के सिद्धान्त' को उपयुक्त माना है।
लहर-सिद्धान्त के समर्थन में विज्ञान ने बताया कि ध्वनि में आवर्तन, परावर्तन और विवर्तन" बनते हैं। ये सब इस सिद्धान्त के बिना फलित नहीं
१-विशेषावश्यक भा० ३७५ नि० ८९ २-वि० आ० भा० ति० ८३७४ ३-५० भा० १११६ ४-परावर्तन - प्रतिध्वनि को कहते हैं। ५-ध्वनि की लहरों के मुड़ने को विवर्तन कहते हैं।