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________________ [ 4 ] उन्होंने कुरल की प्रशस्ति गाथा में कहा है-- कुरल के वास्तविक लेखक श्रीवर हैं, किन्तु अज्ञानी लोग बल्लुबर को इसका लेखक बतलाते हैं, पर बुद्धिमान लोगों को अशानियों की यह मूर्खता भरी बातें स्वीकार नहीं करनी चाहिए ।" प्रो० ए० चक्रवर्ती ने अपने द्वारा सम्पादित तिरुकुल में भली भाँति प्रमाणित किया है कि तमिल परम्परा में आचार्य कुन्दकुन्द के ही 'श्रीवर' और 'ऐलाचार्य' ये दो नाम हैं। जैन विद्वान् जीवक चिन्तामणि ग्रन्थ के टीकाकार नचिनार किaियर ( Nachinar Kitiyar ) ने अपनी टीका में सर्वत्र तिरुक्कुरल के लेखक का नम्ब थीवर बतलाया है। तमिल साहित्य में सामान्यतः भीवर शब्द का प्रयोग जैन श्रमण के अर्थ में किया जाता है । कुरल की एक प्राचीन पाण्डुलिपि के मुखपृष्ठ पर लिखा मिला है-एकाचार्य द्वारा रचित तिरुक्कुरल । * इन सारे प्रमाणों को देखते हुए सन्देह नहीं र जाना चाहिए कि कुरल के वास्तविक रचियता आचार्य कुन्दकुन्द ही थे । भ्रम का कारण यह एक बड़ा-सा प्रश्न चिन्ह बन जाता है कि आचार्य कुन्दकुन्द ( थीवर ब एलाचार्य ) ही इसके रचियता थे तो यह इतना बड़ा भ्रम खड़ा ही कैसे हुआ कि इसके रचयिता तिरुवल्लुवर थे। तमिल की जैन परम्परा में यह प्रचलित है कि एलाचार्य ( आचार्य कुन्दकुन्द ) एक महान् साधक व गणमान्य आचार्य थे अतः उनके लिए अपने ग्रन्थ को प्रमाणित कराने की दृष्टि से मदुरा की सभा में जाना उचित नहीं था । इस स्थिति में उनके गृहस्थ शिष्य श्री तिरुवल्लुवर इस ग्रन्थ को लेकर मदुरा की सभा में गए और उन्होंने ही ; 1—Thirukkural, Ed. by prof. A. Chakravarti, Introduction p.x 2-Thirukkural, Ed. by prof. A. Chakravarti Introduction. P. xii 3-Thirukkural, Ed. by A. Chakravarti, Preface: "The real author of the work which speaks of the four topics is Thevar. But ignorant people mentioned the name of Valluwar as the author. But wise men will not accept this statement of ignorant fools." 4- Thirukkural, Ed. by prof. A. Chakravarti, Introdnation, P. xii.
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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