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[ ८४ ] विद्वान एलिस (Ellis) और पाउल (Graul) ने भी इसी मत की पुष्टि की है। __ तमिल विद्वान् कलादार ( Kalladar ) ने कुरल की प्रशस्ति में लिखा है-"परम्परागत सभी मतवाद एक दूसरे से विरोध रखते हैं। एक दर्शन कहता है, सत्य यह है, तो दूसरा दर्शन कहता है, यह ठीक नहीं है, सत्य तो यह है। कुरल का दर्शन एकान्तवादिता के दोष से सर्वथा मुक्त है।"
इस प्रसंग में यह भी एक महत्त्वपूर्ण प्रमाण हो सकता है कि "कयतरम्" (Kayatram) नामक तमिल निघण्टु के देव प्रकरण में जिनेश्वर के पर्यायपाची नामों में बहुत सारे वही नाम दिए हैं जो कुरल की मंगल प्रशस्ति में प्रयुक्त किए गए हैं। निघण्टुकार ने जो कि ब्राह्मण विद्वान् है, कुरल के रचियता को जेन समझ कर ही अवश्य ऐसा माना है।
कुरल पर अनेकों प्राचीन टीकाएँ उपलब्ध होती है। उनमें से अनेक टीकाएँ जैन विद्वानों द्वारा लिखी गई हैं। इससे भी कुरल का जेन-रचना होना पुष्ट होता है।
सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाली टीका के रचियता धार हैं। उनके विषय में भी धारणा है कि वे प्रसिद्ध जैन-विद्वान तो थे पर धर्म से जेनी नहीं थे।'
कुन्द-कुन्द ही क्यों ? कुरल को जेन रचना मान लेने के पश्चात् भी यह जिज्ञासा तो रह ही जाती है कि इसके रचयिता आचार्य कुन्द-कुन्द ही क्यों ? इस विषय में भी कुछ एक ऐतिहासिक आधार मिलते हैं। मामूलनार ( Mamoolnar ) तमिल के विख्यात कवि हैं। उनका समय ईसा की प्रथम शताब्दी माना जाता है।
१-"Speaking about these traditional darshanas he (Kalladar)
poiuts out that they are couflicting with one another. However one system says the ultimate reality is one, another system will contradict this and says no. This mutual incompatability of the six systems is pointed out and the philosophy of Coural is praised to be free from this defect of onesidedness."
Thirukkural, Ed. by prof. A. Chakravarti. Introduction. २-Thirukkural Bd. by prof.A. Chakravarti, Preface, p.ii