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________________ । ८३ सरण करते हैं, वे दीर्घजीवी होंगे।" प्रस्तुत भावना में भी जितेन्द्रिय शब्द से जिन भगवान की ओर संकेत किया गया है। ___-"केवल वही लोग दुःखों से बच सकते है जो उस अद्वितीय पुरुष की श्रेणी में आते हैं।” तीर्थकर भरत क्षेत्र में एक साथ दो नहीं होते ; इसलिए रचयिता ने उन्हें भी अद्वितीय पुरुष कहा है, ऐसा लगता है। ८-"धन-वैभव और इन्द्रिय सुख के ज्वार-संकुल समुद्र को वही पारकर सकते है, जो उस धर्म-सिन्धु मुनीश्वर के चरणों में लीन रहते हैं।" यहाँ जैनों के परमेष्टी पंचक में पंचम पद की स्तुति की गई है। E-"जो मनुष्य अष्टगुण संयुक्त परब्रह्म के चरण कमलों में सिर नहीं मुकाता, वह उस इन्द्रिय के समान है, जिसमें अपने गुण को ग्रहण करने की शक्ति नहीं है।" जैन परम्परा में मुक्तजीव सिद्ध भगवान् कहलाते हैं। वे केवल ज्ञान, केवल दर्शनादि आठ गुणों से संयुक्त होते हैं। पूर्वोक्त भावना में उनकी स्तुति का ही संकेत मिलता है। १०-"जन्म-मरण के समुद्र को वही पार कर सकते हैं, जो प्रभु के चरणों की शरण में आ जाते हैं। दूसरे लोग उसे तर ही नहीं सकते। प्रस्तुत भावना का प्रभु शब्द पंच परमेष्टी रूप प्रभु की स्तुति की गई है, ऐसा स्वयं लगता है। ५-"देखो, जो मनुष्य प्रभु के गुणों का उत्साहपूर्वक गान करते हैं, उन्हें अपने कमों का दुःखप्रद फल नहीं भोगना पड़ता।" इस प्रकार समग्र स्तुति दशक में कहीं भी जैनत्व की सीमा का उल्लघंन नहीं किया गया है, अपितु स्तुति को जैन और वैदिक दोनों परम्पराओं से सम्मत बनाते हुए भी रचयिता ने जैनत्व का संपोषण किया है। इस प्रकार हम अन्य प्रकरणों की छानबीन में भी जा सकें तो संभवतः बहुत सारी उक्तियाँ मिल जाएंगी जो नितान्त रूप से जैनत्व को अभिव्यक्त करनेवाली ही हैं। अन्य विद्वानों के अंकन में ___ 'तिरुकुरल' कृति की इस सहज अभिव्यक्ति को भारतीय व पाश्चात्य अन्य विद्वानों ने भी आँका है। कनक समाई पिल्ले (Kanaksabhai Pillai) एस. वियपुरी पिल्ले (S.Viyapuri Pillai), टी० बी० कल्याण सुन्दर मुदलियार (T.V.Kalyan Sundara Mudaliar ) आदि अनेकों जेनेतर विद्वान है, जिन्होंने स्पष्ट व्यक्त किया है कि तिरुकुरल एक जैन-रचना है।' यूरोपीय १-Thirukkural, Ed. by prof. A Chakravarti, Introduction, px.
SR No.010092
Book TitleJain Darshan aur Sanskruti Parishad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Banthia
PublisherMohanlal Banthiya
Publication Year1964
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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