________________
[
७८
।
तिरुवल्लुवर से पूछा-आपका अन्य किस विषय पर है ? बल्लुवर ने विनम्र भाव से कहा-मानव-जीवन पर। यह पूछे जाने पर कि मानव-जीवन के किस पहलू पर है ; वल्लुवरने कहा --सभी पहलुओं पर ।
इस बात पर सभी सभासद हँसे । छोटा-सा ग्रन्थ और मानव-जीवन के सभी पहलुओं पर विवेचन।
प्रधान ने पुस्तक का वाचन प्रारम्भ किया। दो-चार पद्य पढ़े कि बल्लुवर की भाव-व्यंजना ने सभी को आकृष्ट किया। क्रमशः पूरा ग्रन्थ पढ़ा गया। सभी सभासद आनन्द विभोर हो उठे। एक स्वर से सबने कहा-सचमुच ही यह तो तमिलवेद बन गया है।
इस प्रकार तिरुवल्लुवर महान् ख्याति अर्जित कर अपने घर लौटे। तिरुकुरल ग्रन्थ तब से तमिल वेद कहा जाने लगा। तिरुकुरल का अभिप्राय होता है-कुरल छन्दों में लिखा गया, पवित्र ग्रन्थ । तिरुवल्लुवर का अभिप्राय है-पवित्र, वल्लुवर अर्थात् सन्त वल्लुवर ।।
वल्लुवर का गृह-जीवन बल्लुबर कबीर की तरह जुलाहे थे। कपड़ा बुनना और उससे आजीविका चलाना उनका परम्परागत कार्य था। जातीयता की दृष्टि से वे दक्षिण की अछत जाति के माने गए हैं। उनकी पली का नाम बासुकी था। वह भी एक आदर्श और अर्चनीय महिला मानी गई है। पातिव्रत धर्म को निभाने में वह निराली थी। अपने पति के प्रति मन, वचन और कम से वह कितनी समर्पित थी और कितनी श्रद्धाशीला थी; इस सम्बन्ध में बहुत सारी घटनायें तमिल समाज में प्रचलित हैं।
कहा जाता है , तिरुवल्लुवर ने एक बार उसकी श्रद्धा का अंकन करने के लिये कहा-आज लोहे की कीलों और लोहे के टुकड़ों का शाक बनाओ। वासुकी ने बिना किसी तर्क और आशंका के चूल्हे पर तपेली चढ़ा दी और वह लाहे के टुकड़ों ओर कीलों को उबालने लगी।
एक बार सूर्य के प्रचण्ड प्रकाश में भी किसी खोई वस्तु को खोजने के लिये तिरुवल्लुवर ने वासुकी से चिराग मंगाया। वासुकी ने बिना ननु-नच के चिराग जलाया और वह खोई हुई वस्तु को खोजने में पति की मदद करने लगी।
एक दिन वासुकी घर के कुएँ से पानी निकाल रही थी। अकस्मात् पति का आहान कानों में पड़ा। उसने अपने आधे खींचे बर्तन को ज्यों-का-त्यों