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क्रोध के विषय में कहा गया है- "जो व्यक्ति क्रोध को दिल में जमाकर रखता है, जैसे वह कोई बहुमूल्य पदार्थ हो, वह उस मनुष्य के समान है जो कठोर जमीन पर हाथ दे भारता है । उस आदमी को चोट आए बिना नहीं रह सकती।
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मायावी के विषय में कहा गया है - "तीर सीधा होता है और तम्बूरे में कुछ टेढ़ापन रहता है। इसीलिये आदमियों को उनकी सूरत से नहीं, उनके कामों से पहचानो । भावार्थ - तीर सीधा होकर भी कलेजे में लगता है, तम्बूरा टेढ़ा होकर भी अपनी मधुर ध्वनि से हमें आादित करता है, अतः मायावी लोगों की ऊपरी सरलता में न फँसो ।
धैर्य के विषय में कहा गया है- “विपत्ति से लोहा लेने में मुस्कान से बढ़कर कोई साथी नहीं हो सकता | 3
वाणी के विषय में कहा गया है - "तुम ऐसी वक्तृता दो कि दूसरी कोई वक्तृता उसे चुप न कर सके । ४
सामान्य उपदेशों को भी निराले ढंगसे कहने में कवि बहुत सफल रहा है। गरिमा और अभिघा
यह ग्रन्थ इतना ख्यातिलब्ध कैसे हुआ और इसे इतनी मान्यता कैसे मिली इस विषय में भी एक सरस किंवदन्ती तमिल लोगों में प्रचलित है । कहा जाता है, उन दिनों दक्षिण में मदुरा नामक एक नगर था । वह नगर अपने विद्याबल से प्रसिद्ध था । वहाँ तमिल भाषा के विद्वानों की एक बड़ी सभा थी । उसमें एक ऊँचा आसन रहता । उसके विषय में यह धारणा थी कि जब सभा लगती है, तत्र अदृश्य रूप में यहाँ सरस्वती आकर बैठती हैं । अन्य ४६ आसनों पर उस सभा के धुरन्धर विद्वान बैठते थे । दूर-दूर तक इस सभा का यश फैला था । विविध ग्रन्थ रचयिता वहाँ आते और अपने ग्रन्थ को उस सभा के समक्ष रखते । सभासद उस ग्रंथ का वाचन करते और उस पर अपना मत अभिव्यक्त करते ।
freeवर एक सन्त प्रकृति के पुरुष थे स्थापन नहीं चाहते थे, पर मित्रों के दबाव से उस विद्वत्-सभा में उपस्थित होना पड़ा। के हाथों में दिया । सभाध्यक्ष ने अन्य सभासदों को वह ग्रन्थ दिखाते हुए
। वे अपने ग्रन्थ का ऐसा अभिI अपना ग्रन्थ लेकर उन्हें मदुरा की उन्होने अपना ग्रन्थ सभाध्यक्ष
१ - कोष प्रकरण- ७
३-- विपत्ति में धैर्य प्रकरण- १
२- माया प्रकरण है । ४--वाकपटुता करण-21.