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जैन-भक्तिके अंग
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वह लड़की थी जिसके साथ कृष्णको अदला-बदली हुई थी। इस लड़की का पालनपोषण देवकीने किया था । सयानी होनेपर यह जैन हो गयी, और राजमहलसे निकलकर एक झुण्डके साथ विन्ध्यपर्वतपर पहुँच गयी । वहाँ उस लड़कीको, ध्यान मुद्रा में बैठी हुई देखकर, भोलोंने देवी मान लिया, और पूजा-अर्चा की । कुछ समयोपरान्त उसे एक सिंह खा गया । उसको स्मृतिमें मेला लगने लगा और आज भी लगता है । पंचकल्याण और प्रतिष्ठामहोत्सव तथा इन्दमहा आदिकी बात आगेके अध्यायोंमें यथाप्रसङ्ग कही जायेगी ।
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१. हरिषेणाचार्य, बृहत्कथाकोश : डॉ० ए. एन. उपाध्ये सम्पादित, सिंधी जैन ग्रन्थमाला, भारतीय विद्या भवन, बम्बई, १०६वीं कथा ।