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जैन-मफिके अंग
इनके अतिरिक्त और सैकड़ों रास थे, जो संयमपूर्वक खेले जाते रहे । उनमें भरतेश्वर बाहुबलि रास, समरसिंह रास, गय कुमाररास, नेमिरास और अम्बादेवी रास बहुत प्रसिद्ध है। जम्बूस्वामी-चरितमें लिखा है कि अम्बादेवी रासका अभिनय जिन-सेवकों द्वारा जैन-मन्दिरोंमें समय-समयपर प्रदर्शित किया जाता था। रथ-यात्रा महोत्सव
भारतवर्ष में रथोंका प्रचलन बहुत प्राचीन है। जब ईंट-पत्थरोंके बने मन्दिर नहीं थे, तब काष्ठ-निमित ये रथ ही चलते-फिरते मन्दिर थे । डॉ० ए. के० कुमारस्वामीने उनको Processioval-car" और डॉ० ए० वेङ्कटराम नैय्या ने Temple-car कहा है। महाबलीपुरम् के मन्दिरोंको आज भी रथ ही कहा जाता है। द्राविड़ मन्दिरोंको विमान संज्ञासे अभिहित किया गया, . वह भी रथके अनुकरणवाली हो बात थी। १. इसकी खोज श्री अगरचन्दजी नाहटाने, जैसलमेरमें की है। उन्होंने
इसका रचनाकाल सं० १३०० के समीप माना है। २. चंचरिय बांधि विरहउ सरसु, गाहज्जइ संतिउ तारू जसु ।
नधिज्जइ जिणाजय सेवकहि, बिउ रासउ अम्बादेवयहिं ।। जम्बूस्वामीचरिउ : संधि १, डॉ. दशरथ ओझा, हिन्दी नाटक, उद्भव
और विकास : पृ० ५३८ से उद्धत । 3. The vesemblance of the Aryavarta sikhara to the bamboo
scaffolding of a processional-car is too striking to be accidental.
Dr. A. K. Kumarswami, Arts and Crafts, pp. 118-119. ४. The temple-cars, it must be remembered, are called
rathas, cars,' it is by this term that the monolithic temples at Mahabalipuram are generally known. Dr. N. Venkata Rama. Nayya, Essay on the origin of the south Indian temples, Methodist Publishinghouse,
Madras, 1930, p. 64. 4. While the term "vimana" applied to later Dravidian
temples, has originally the same sense of 'vehicle' or 'moving palace'. Dr. A. K. Kumarswami; Arts and Crafts. p. 119.