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जैन-भक्तिकान्यकी पृष्ठभूमि अपभ्रंशके प्रसिद्ध ग्रन्थ परमात्म-प्रकाश का प्रारम्भ भगवान् सिद्धको स्तुतिसे हुआ है
जे जाया माणग्गियए कम्म-कलंक डहेवि ।
णिश्च-णिरंजण-णाण-मय ते परमप्प णवेवि ।। अपभ्रंशके महाकवि पुष्पदन्त ने जसहरचरिउके प्रारम्भमें भगवान् जिनेन्द्रको नमस्कार करते हुए कहा है
तिहुवणसिरिकंतहो अइसयवंतहो भरहंतहो हयवम्महहो।
पणविवि परमेटिहि पविमलदिहिहि चरणजुयलणयसयमहहो ॥ मुनि कनकामर के 'करकंडुचरिउ'के पहले स्तवकको बारह पंक्तियाँ, भगवान् जिनेन्द्र के स्तवनसे भरी हुई हैं । उनमें पहली दो इस प्रकार हैं१. डॉ० ए० एन० उपाध्येने परमात्मप्रकाशके रचयिता योगीन्दुका समय
ईसाकी छठी शताब्दी निर्धारित किया है। देखिए डॉ० ए० एन० उपाध्येका लेख, जोइन्दु एण्ड हिज अपभ्रंश वर्क्स, एनल्स ऑव माण्डारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीटयट, जिल्द १२, १६३१ ई०, पृ० १६१-६२ ।। जो भगवान् ध्यानरूपी अग्निसे पहले कर्मरूपी मलको मस्म करके नित्य, निरंजन और ज्ञानमयी सिद्ध परमात्मा हुए हैं, उन सिद्धोंको नमस्कार करके मैं परमात्मप्रकाशका व्याख्यान करता हूँ। श्रीमद् योगीन्दुदेव, परमात्मप्रकाश : डॉ० ए० एन० उपाध्ये सम्पादित, पं. जगदीशचन्द्र, हिन्दी अनूदित, परमश्रुत प्रमावक-मण्डल, बम्बई, १९९३
वि० सं०, पहली गाथा, पृ० ५। ३. पं. नाथराम प्रेमीने पुष्पदंतका साहित्यिक काल शक संवत् ८८१-८९४
निर्धारित किया है। पं० नाथराम प्रेमी, जैन-साहित्य और इतिहास : नवीन संस्करण, हिन्दी
ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई, अक्टूबर १९५६, पृ० २५० । ४. तीनों लोकोंमें जिनकी कान्ति फैल रही है, जो अतिशयवन्त है और
जिन्होंने कौंको नष्ट कर दिया है, ऐसे भगवान् अरहंतको प्रणाम करके मैं विमल दृष्टिवाले परमेष्ठीके चरणों में प्रणत होता हूँ। पुष्पदंत, जसहरचरिउ : डॉ० पी० एल० बैद्य सम्पादित, जैन पब्लिकेशन
सोसाइटी कारंजा, बरार, पहले स्तवककी प्रथम दो पंक्तियाँ। ५. डॉ. हीरालाल जैनने लिखावटके आधारपर मुनि कनकामरका समय
ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी निर्धारित किया है। डॉ० हीरालाल जैनका लेख, अपभ्रंश भाषा और साहित्य : काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ५०, अंक ३-४, पृ० ११४ ।