________________ 182 जैन-मक्तिकामकी प्रभूमि जाता है। और चारों ओरसे केवलज्ञान-लक्ष्मीका उदय होता है। केवलज्ञान प्राप्त करना ही जैन-साधकका ध्येय है और यह शान देवोकी भक्तिसे सहजमें उपलब्ध हो जाता है। - "कुरुकुल्लादेवी-स्तवनम्' के रचयिता श्री देवसूरिका जन्म सं० ११४३और मृत्यु सं० 1226 माना जाता है। 8. अन्य देवियाँ उपयुक्त देवियोंके अतिरिक्त, तीर्थकरकी माता, अन्य बोस शासन देवियां, छह दिक्कुमारिकाएँ , लक्ष्मी और सोलह विद्यादेवियोंकी पूजा-स्तुति भी होती रही है। उनकी मूर्तियां भी बनी हैं और मन्दिर भी। 1. सकलकरणरोधाद् ध्यानलीनस्य पुंसः स्फुरसि मनसि यस्य त्वं महोद्योतरूपा। सपदि विदलयन्ती तस्य जाड्यान्धकारं समुदयति समन्तात् केवलज्ञानलक्ष्मीः // देखिए वही : ९वाँ श्लोक, पृ० 232 / 2. फतेहचन्द बेलानी, जैनग्रन्थ और अन्धकार : बनारस, पृ० 18 // 3. रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रश्रृंखला, वनांकुशा, अप्रतिचक्रेश्वरी, पुरूषदत्ता, मनोवेगा, महाकाली, गौरी, गान्धारी, बैरोटी, सोलसा, अनन्तमती, मानसी, महामानसी, जया, विजया, अपराजिता, बहुरूपिणी और सिबायनी। यतिवृषम, तिलोयपण्णत्ति : प्रथम भाग, 41937-39, पृ० 267 / 4. श्री, ही, पृप्ति, कीति, बुद्धि और लक्ष्मी। उमास्वाति, तत्वार्थसूत्र : 3 / 19, पृ० 73 / 5. रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रश्रृंखला, वज्रांकुशा, अप्रतिचक्रेश्वरी, पुरुषदत्ता, काली, महाकाली, गौरी, गन्धारी, सर्वास्त्रमहाज्वाला, मानवी, बैरोव्या, भन्छुप्टा, मानसी और महामानसी। बी० सी० भट्टाचार्य, जैन इक्नाप्राफी : लाहौर, पृ० 164 / /