________________
जैन-मक्तिके भेद
१
विक्रमको १४वीं शताब्दीके प्रसिद्ध आचार्य जिनप्रभसूरिने पैदल ही, भारतके सभी जैन तीर्थक्षेत्रोंकी वन्दना को थी, और उनका ऐतिहासिक तथा परम्परानुश्रुत वर्णन विविधतीर्थकल्पमें उपलब्ध होता है ।' तपागच्छीय मुनि शोलविजयने भी सभी जैन तीर्थों की पैदल यात्रा की, और उनका देखा-सुना वर्णन 'तीर्थमाला' में निबद्ध किया । वाचनाचार्य राजशेखरने अपने सहयोगी मुनियोंके साथ, बनारस, राजगृह, पावापुरी और उद्दण्डविहार आदिको वि. सं. १३५२ में तीर्थ यात्रा की थी।
3
अपनी माँकी प्रतिज्ञा पूर्ण करनेके लिए चामुण्डराय (११वीं शताब्दी विक्रम) संघसहित पोदनपुरकी तीर्थ-यात्रा के निमित्त गये थे । किन्तु पोदनपुरके संदिग्ध होनेसे यह यात्रा गोम्मटेश्वरकी रचनाके रूपमें प्रतिफलित हुई ।'
१३०
वि. सं. १६६१ में, शहजादा सलीमके कृपापात्र और जोहरी श्री हीरानन्द मुकोमने प्रयागसे सम्मेदशिखर के लिए एक संघ चलाया था । उसका विस्तृत वर्णन महाकवि बनारसीदासके अर्धकथानक में मिलता है । कवि बनारसीदासने स्वयं भी बनारस की तीर्थ-यात्रा की थी। आगरेके कुँअरपाल सोनपालने भो,
१. देखिए, 'विविध तीर्थकल्प' : प्रास्ताविक निवेदन : पृ०१ |
२. मुनि शीलविजयने अपनी यात्रा वि. सं. १७११ में प्रारम्भ की और वि. सं. १७४८ में समाप्त की । उनके ग्रन्थ 'तीर्थमाला' के पहले मागमें ८५,
दूसरे में ५५, तीसरे में १७३ और चौथेमें ५५ पथ हैं ।
'प्राचीन तीर्थमाला संग्रह' : मावनगर, वि. सं. १९७८ ।
३. युगप्रधानाचार्य गुर्वावली : पृ० ६० ।
४. सुरेन्द्रनाथ श्रीपालजी जैन, जैनबद्रीके बाहुबली तथा दक्षिणके अन्य जैनतीर्थ : जैन पब्लिसिटी ब्यूरो, बम्बई, १९५३, पृ० २९ ।
साहिब साह सलीमकौ, होरानन्द मुकीम |
ओसवाल कुल जौहरी, बनिक बित्तको सीम ॥ तिनि प्रयागपुर नगरसौं, कीनौ उद्दम सार । संघ चलायौ सिखिरक, उतरचौ गंगापार ॥
कवि बनारसीदास, अर्धकथानक, बम्बई : अक्टूबर १९५७, दोहरा
33.
२२४-२२५, पृ० २५-२६ ।
६. चले सिवमती न्हानकौं, जैनीपूजन पास ।
तिन्हके साथ बनारसी, चले बनारसिदास ॥ देखिए, वही : २३१वाँ दोहरा, पृ० २६ ।