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खण्ड] * भगवान् महावीरके बादका जैन-इतिहास * ५३ कर डाले; उनकी मूर्तियोंका अङ्ग भग कर डाला; जैन साधुओं, बौद्ध भिक्षुकों और पुजारियोंको बुरी तरह कत्ल किया; मन्दिरोंके भंडारोंको लूटा और भण्डारोंमें आग लगाकर अन्थोंको स्वाहा कर दिया।
इस प्रकारकी अवस्था सौ-पचास वर्ष नहीं रही, बल्कि सैकड़ों वर्षों तक यानी पन्द्रहसौके अन्तमें और सोलहसौ के प्रारम्भ तक चलती रही । इन तमाम हमले, मारकाट व आपत्तियोंसे जैनधर्मके साधुओं, गृहस्थों, मन्दिरों व साहित्यको बड़ा धक्का व नुकसान पहुँचा । इस मुसीबतके समयमें जो कुछ साधु व मुनि बचे, वे पंजाब, बंगाल, बिहार व मध्य भारतवर्षसे विहार करके गुजरात और राजपूतानेकी
ओर पधार गए। ... सन् १०१६ से सन् १५५० तक भारतवर्षकी क्या राजनैतिक, क्या सामाजिक, क्या व्यापारिक, क्या धार्मिक, सभी व्यवस्थाएँ बहुत बुरी रहीं। इसका कारण सिर्फ यही था कि इस पाँचसौ वर्षके समयमें किसीका स्थायी राज्य नहीं हुआ। इसके अतिरिक्त आये दिन उत्तरकी ओरसे हमले हुआ करते थे, और इन मुसलिम बादशाहोंमें भारतवर्षके तमाम धर्मोके खिलाफ बड़ा द्वेष था। इस कारण इन पाँचसौ वर्षमें सदा मारकाट, जोरजुल्म वगैरह ही हुआ करे । जब बादशाह अकबरने भारतवर्ष की हुकूमतको अपने हाथमें लिया, तब थोड़ी-सी शान्ति यहाँ