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________________ * जेल में मेरा जैनाभ्यास * [प्रथम ___ घरके आपसके झगड़ोंके अलावा अन्य धर्म वालोंने भी जैनधर्मपर वार करना प्रारम्भ कर दिया था। कारण कि जब घरमें वैमनस्य होता है तो बाहर वालोंको सहज में एक अच्छा मौका हाथ लग जाता है। इसीके अनुसार विक्रम संवत् ७०० के लगभग श्रीशंकराचाय्य हुए, जिन्होंने जैनधमके साथ एक बड़ा भीषण वाद-विवाद प्रारम्भ कर दिया। इन्होंने अपने शिष्य राजा द्वारा जैनसाधु, गृहस्थ व साहित्यपर बड़ा दबाव गिरवाया। गो इसके द्वारा जैनधर्मको काफ़ी धक्का लगा, पर वह किसी सूरतमें दबा नहीं। बादमें कई शताब्दी तक जनधर्माचार्य और शंकराचार्य के मठधारियों में समय-समयपर वाद-विवाद चलता रहा। ___ यहाँ ये सब वाद-विवाद चल ही रहे थे कि इन्हीं दिनों अर्थात् विक्रम संवत् ११०० के लगभग भारतवर्षमें उत्तरकी ओरसे महमूद गज़नवी और मुहम्मद गौरी आदिके हमले होने भी प्रारम्भ हो गए। जिन्होंने अपनी क्रूरतासे भारतकी समस्त प्रजाको त्रसित करना प्रारम्भ कर दिया। इनके बाद अनेक तुर्कों व पठानोंने समय समयपर भारतवर्षपर हमले करना प्रारम्भ कर दिया। जिनका मुख्य सिद्धान्त हिन्दुओंको इस्लामधर्म स्वीकार करानेका था। इन हमला करने वालोंने न सिर्फ आदमियोंको कत्ल किया और उनका धन लूटा, बल्कि हिन्दुओं, जैनियों और बौद्धोंके मन्दिरों व स्तूपोंके टुकड़े-टुकड़े
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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