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________________ खण्ड] * जैनधर्मानुसार जैनधर्मका संक्षिप्त इतिहास * ३३ नव महीनेके बाद श्रीत्रिशला रानीने एक अतिसुन्दर और होनहार पुत्रको आज (वि० सं० १९८६) से २५३१ वर्ष पूर्व जन्म दिया। जिस दिनसे यह पुत्र हुआ, उसी दिनसे राजाके कुल, धन-धान्य तथा आनन्दकी दिन-दूनी रात चौगुनी वृद्धि होने लगी। इसको देख कर राजा ने पुत्र का नाम 'वर्धमान' रक्खा। __ये कुमार आनन्द पूर्वक पाले जाने लगे। जब वे ८ वर्षके हुये ता पढ़ानेका प्रबन्ध किया गया, पर पण्डितोंको मालूम हुआ कि उनकी समझ बहुत अधिक है और प्रत्येक बातको वे अपनी बुद्धिसे ही समझ लेते हैं। अतः उन्हें कुछ पढ़ाने-लिखानेकी विशेष आवश्यकता प्रतीत नहीं हुई। __ श्रीवर्धमान माता-पिताके बड़े भक्त थे । वे अपने मातापिताको सदा प्रसन्न रखना चाहते थे। वे कभी किसीपर क्रोध नहीं करते थे। चित्तमें कभी अभिमानका अंश भी न आने देते थे। सदा सत्य बोलते थे। उन्हें सांसारिक विषय-भोग और लालसा अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाती थी। वे सदा विरक्त भावसे रहते थे। __श्रीवर्धमानकुमार बड़ी अवस्थाके होगये, पर विवाह करनेकी उन्हें तनिक भी इच्छा नथी । तथापि माता-पिताके अधिक आग्रह । करनेपर उन्होंने शादी कर ली। जिस कन्याके साथ उनकी शादी की गई, वह बड़ी सुन्दर, सुशील और गम्भीर थी। उसका नाम 'श्रीयशोदा' था। कुछ समयके पश्चात् उनके एक कन्या-रत्नने जन्म लिया, जिसका नाम 'प्रियदर्शना' रक्खा गया।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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